शास्त्रीय संगीत की दुनिया में बादशाहत हासिल करने वाले उस्ताद विलायत खान को कोई भी भुला नहीं सकता है. विलायत खान ब्रिटिश भारत बांग्लादेश में 28 अगस्त 1928 को जन्मे थे. पांच पीढ़ियों बाद सितार वादन उन्हें विरासत में मिली थी, उनके परिवार की कई पीढियां सितार वादन से जुड़ी हुई थी. उनके पिता इनायत खान और दादा इमदाद खान मशहूर सितार वादक थे. उनके बाद ये कला उनके बेटों शुजात खान और हिदायत खान के साथ-साथ उनके भाई और भतीजों के साथ भी जारी रही थी. 


'द सिक्स्थ स्ट्रिंग ऑफ विलायत खान'


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'द सिक्स्थ स्ट्रिंग ऑफ विलायत खान' लेखिका नमिता देवीदाय की लिखी किताब में उनके जीवन से जुड़े अनसुने पहलुओं को बड़ी ही खूबसूरती से बयां किया हुआ है. इस किताब में उनके शुरुआती दिनों से लेकर शास्त्रीय संगीत के रॉक स्टार बनने तक की पूरा सफर बताया गया है. पर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद भी उनकी कला के कायल थे और उन्होंने ही उन्हें "आफताब-ए-सितार" का सम्मान दिया था. इसके साथ-साथ उन्हें 'भारत सितार सम्राट' की उपाधि भी मिली थी. 


1 बार पद्मश्री और दो बार पद्म विभूषण ठुकराया


सितार के महानायक उस्ताद विलायत खान को शायद ही कोई भारतीय शास्त्रीय संगीत प्रेमी ना जानता हो. अपनी संगीत कौशल के साथ-साथ वे अपने स्वभाव के लिए भी काफी मशहूर थे. उन्हें अपनी बेबाकी के लिए जाना जाता है. उन्होंने  1964 में पद्मश्री और 1968 में पद्म विभूषण सम्मान ठुकरा दिया था. उनका कहना था कि भारत सरकार ने उनके हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में योगदान को सही सम्मान नहीं दिया है. इसके साथ जनवरी 2000 में उन्हें फिर से पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था, लेकिय उन्होंने इसका भी इनकार कर दिया था. उनका कहना था कि वह कोई भी ऐसा पुरस्कार स्वीकार नहीं करेंगे जो दूसरे सितार वादकों को उनसे पहले मिला है. 


कैंसर से हुआ निधन


विलाय खान का दूसरा घर न्यू जर्सी बन गया था, वे एक साल में आठ महीने विदेश में ही गुज़ारा करते थे. उनका ज्यादातर जिंदगी कोलकाता में गुज़री. 13 मार्च 2004 को कैंसर से उनका निधन हो गया. उन्हें उनके पिता के बगल में ही दफनाया गया.