कोलकाताः अभिनेत्री दीप्ति नवल (Dipti Naval) अपने जमाने के हिन्दी कला फिल्मों के क्षेत्र में एक बड़ा नाम है. उन्होंने हिंदी सिनेमा को कई यादगार फिल्में दी हैं. फिल्म निर्देशक प्रकाश झा की पूर्व पत्नी दीप्ति नवल (Dipti Naval) एक अभिनेत्री होने के साथ ही फिल्म निर्देशन, पेंटिंग और लेखन के क्षेत्र में भी सक्रिय रही हैं. हाल ही में उनकी एक नई किताब आई है, 'ए कंट्री कॉल्ड चाइल्डहुड’ (A Country Called Childhood). इस किताब में उन्होंने आजादी हासिल करने और विभाजन का दंश झेलने वाले भारत के तत्कालीन भावनात्मक उथल-पुथल और क्लेशों की कहानियों का जिक्र किया है. कोलकाता के एक साहित्यिक बैठक में उन्होंने अपने इस संस्मरण के कुछ अंशों को पढ़कर सुनाया और उसपर चर्चा भी की. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह बचपन से ही अभिनेत्री बनना चाहती थीं, और ऐसा न होने पर नन बन जाने की उनकी इच्छा थी.  

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तब मनाली में मिलता था 50 रुपये महीने में होटल का कमरा  
कोलकाता साहित्य महोत्सव में शनिवार को हिस्सा लेने पहुंची दीप्ति नवल ने अपने संस्मरण को अंश पढ़कर अमृतसर की गलियों, उपनगरों, अपने कॉन्वेंट के अनुभवों और अपने माता-पिता से सीखे गए सबक का जिक्र किया. उन्होंने कहा, “हम गर्मी की छुट्टियों में अक्सर मनाली जाते थे और वहाँ एक होटल में 50 रुपये महीने के हिसाब से कमरा लेकर ठहरते थे. मैं इस जगह को सेब का कॉटेज कहना पसंद करूंगी, क्योंकि वहां सेब के और कुछ भी उपलब्ध नहीं था. मेरी माँ हर खाने में सेब शामिल करती थीं.“

बर्मा से भारत आए थे ननिहाली खानदान के लोग 
श्याम बेनेगल की फिल्म 'जुनून’ से अपने फिल्मी करिअर की शुरुआत करने वाली इस अभिनेत्री ने अपने ननिहाल के खानदान का भी अपने संस्मरण में जिक्र किया है. उनके नानी का परिवार बर्मा से ताल्लुक रखता था. द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त जब जापान ने बर्मा पर हमला किया तो दीप्ति नवल के नाना का परिवार बर्मा से भागकर भारत आ गया था. दीप्ति ने संस्मरण में अपनी नानी का जिक्र करते हुए लिखा है कि सीमा पार कर भारत में प्रवेश करते वक्त उनके नानी के परिवार को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, लेकिन इसके बावजूद वह अपने साथ अपना ग्रामोफोन लाना नहीं भूली थीं. दीप्ति नवल ने कहा, “वह ग्रामोफोन अभी भी मैंने अपने पेंटिंग स्टूडियो में संभाल कर रखा है.’’

अभिनय में असफल होने पर नन बनने का रखती थी ख्वाहिंश 
दीप्ति नवल की किताब में भारत-पाकिस्तान युद्ध की कहानियाँ, और उसके विभाजन की भयावहता का भी उल्लेख है. 70 वर्षीय अभिनेत्री ने यह भी बताया कि बलराज साहनी के एक नाटक ने उन्हें यह तय करने में मदद की थी कि वह एक अभिनेत्री बनेंगी या एक नन बनेंगी. दीप्ति नवल बचपन में अपने कॉन्वेंट के शिक्षकों से गहराई से प्रभावित थीं. तब उन्हें देखकर उन्होंने फैसला किया था कि मैं एक अभिनेत्री बनूंगी, और अगर ऐसा नहीं कर पाई तो एक नन बन जाउंगी. 


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