दिलकश अदाकारा का गमगीन सफर, मधुबाला ने इस दर्द को जिंदगी भर सीने में दबाए रखा
मधुबाला का व्यक्तिगत जीवन काफी उथल-पुथल वाला रहा. कई फिल्मों में दिलीप कुमार के साथ काम करते-करते, वह उनकी तरफ आकर्षित हो गईं.
ए . निशांत/नई दिल्ली: भारतीय सिनेमा के संदर्भ में अगर सौंदर्य के साथ यादगार अभिनय की चर्चा होगी, तो सबसे पहले मधुबाला (Madhubala) का जिक्र होगा. भारतीय सिनेमा का इतिहास फिल्म मुगल-ए-आजम के बिना अधूरा है.
के. आसिफ द्वारा निर्देशित इस क्लासिकल फिल्म में दिलीप कुमार, मधुबाला और पृथ्वीराज कपूर द्वारा निभाया गया चरित्र, आज भी दर्शकों के दिलो-दिमाग में ताजा है. इस फिल्म के सभी कलाकारों ने अपने उत्कृष्ट अभिनय की बदौलत मुगल-ए-आजम को सिने-जगत की ऐतिहासिक फिल्म बना दिया. इस फिल्म में मधुबाला द्वारा अभिनीत अनारकली की भूमिका को शायद ही कोई भूल पाएगा. अपनी बेपनाह खूबसूरती, दमदार अदाकारी और दिलकश अदाओं से दर्शकों के दिल पर राज करने वाली मधुबाला आज भी भारतीय सिनेमा की चोटी की अभिनेत्रियों में शुमार होती हैं.
14 फरवरी 1933 को दिल्ली में जन्मी मधुबाला ने अपनी अभिनय यात्रा 1942 में बेबी मुमताज के रूप में शुरू की थी. बतौर बाल कलाकार बेबी मुमताज को बसंत फिल्म में काम करने का मौका मिला. इसी दौरान उस समय की शीर्ष अभिनेत्री देविका रानी की नजर बेबी मुमताज के ऊपर पड़ी और वह फिर पूरी दुनिया के लिए मधुबाला हो गईं. देविका रानी ने बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ज्वार-भाटा में दिलीप कुमार के साथ उनकी जोड़ी बनानी चाही, मगर किसी वजह से ना सकी. बॉम्बे टॉकीज़ 1934 में स्थापित एक फिल्म स्टूडियो था. जिस का संचालन देविका रानी अपने पति हिमांशु राय के साथ मिलकर करती थीं. उन्होंने बॉम्बे टॉकीज के बैनर तले 40 फिल्मों का निर्माण कर उस दौर के तमाम नवोदित कलाकारों को मौका दिया.
फिल्म ज्वार-भाटा से दिलीप कुमार (Dilip Kumar) ने अपनी सिने यात्रा की शुरुआत की थी. इसकी गिनती उनके करियर की सफल फिल्मों में होती है. मधुबाला को फिल्म अभिनेत्री के रूप में पहचान निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा की 1947 में प्रदर्शित फिल्म नीलकमल से मिली, जिसमें उनकी जोड़ी राजकपूर के साथ थी. बतौर अभिनेता यह राजकपूर की पहली फिल्म थी. फिल्म तो नहीं चली लेकिन दोनों कलाकार चल निकले.
फिल्म मुग़ल-ए-आज़म में दिलीप कुमार और मधुबाला के बीच फिल्माया गया होठों के बीच पंख वाला क्लासिक सीन ऐसे वक्त में शूट किया गया था, जब वह दोनों एक दूसरे से बातचीत तक नहीं करते थे. ऐसे माहौल में यह प्रणय दृश्य करना बहुत ही कठिन था, मगर दोनों के दिग्गज कलाकारों ने अपनी व्यक्तिगत भावना को कैमरे पर नहीं हावी होने दिया और बड़ी सहजता के साथ इस दृश्य को यादगार बना दिया. इस बात का जिक्र दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा दिलीप कुमार: द सबस्टांस एंड द शैडो में बखूबी किया है.
अपने छोटे से सफर में अपार लोकप्रियता पाने वाली वीनस ऑफ हिंदी सिनेमा के नाम से ख्यात मधुबाला का फिल्मी सफर बहुत ही छोटा रहा. मगर इनका अभिनय आज भी यादगार है. मधुबाला का व्यक्तिगत जीवन काफी उथल-पुथल वाला रहा. कई फिल्मों में दिलीप कुमार के साथ काम करते-करते, वह उनकी तरफ आकर्षित हो गईं. शुरुआत में दिलीप कुमार ने भी इस रिश्ते पर मुहर लगाई. मगर कुछ समय बाद दिलीप कुमार ने अपने व्यक्तिगत कारणों से यह रिश्ता तोड़ दिया.
कई लोग इस घटना के लिए मधुबाला के पिता को कसूरवार ठहराते हैं. मगर दिलीप कुमार से टूटे रिश्ते के बाद, वह आजीवन सहज ना हो सकीं. इस दर्द को ताउम्र अपने सीने में दबाए रखा. इस दौरान कई लोगों ने उनसे प्रणय निवेदन किया, मगर उन्होंने सुप्रसिद्ध गायक और अभिनेता किशोर कुमार को अपना हमसफर चुना.
फिल्म चलती का नाम गाड़ी में मधुबाला किशोर कुमार, उनके भाई और उस समय के शीर्ष अभिनेता अशोक कुमार के साथ अभिनय कर चुकी थीं. इसी दौरान वह किशोर कुमार के नजदीक आयी थीं. किशोर कुमार के साथ भी उनका वैवाहिक जीवन कुछ खास सफल नहीं रहा. 23 फरवरी 1969 मात्र 36 साल की उम्र में वह इस फानी दुनिया से रुखसत कर गयीं और अपने पीछे अपने तमाम चाहने वालों के साथ-साथ अपने तमाम किस्से छोड़ गयीं.
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