Pankaj Udhas Ghazals: आज यानी 17 मई को महान गजल गायक पकंज उदास का जन्मदिन है. वह 17 मई 1951 में गुजरात के राजकोट में पैदा हुए थे. बॉलीवुड इंडस्ट्री में पंकज उधास सबसे बड़े गजल गायकों में शुमार होते हैं. आज वह अपना 72वां जन्मदिन मना रहे हैं. पंकज उधास के दो बड़े भाई हैं. ये दोनों ही गजल गायक हैं. 


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पंकज उधास के बड़े भाई मनहर उधास अभिनेता थे. इन्हीं की वजह से वह संगीत की दुनिया में आए. भारत-चीन जंग के दौरान पंकज उधास ने स्टेज पर 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाया. इसके लिए उन्हें 51 रुपये इनाम दिया गया. इसके बाद उन्होंने राजकोट संगीत नाटक एकेडमी में दाखिला लेकर तबला बजाना सीखा. इसके बाद सेंट जेवियर्स कॉलेज से पढ़ाई की. इसके बाद बार में काम किया. साल 1972 में इन्होंने पहली बार बॉलीवुड के लिए गाया. 


गजल गाने में दिलचस्पी रखने की वजह से उन्होंने उर्दू सीखी. इसके बाद वह कनाडा चले गए जहां पर यह छोटे-छोटे प्रोग्रामों में गाया करते थे. साल 1980 में उनका एल्बम 'आहट' रिलीज हुआ जो काफा कामयाब रहा. आपके लिए हम यहां पेश कर रहे हैं पंकज उधास की गाई हुई कुछ गजलें. सुनें.


यह गजल 'नाम' फिल्म की है. इसके बोल आनंद बख्शी ने लिखे हैं. इसे पंकज उदास ने गाया है.


चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है -२
चिट्ठी है वतन से चिट्ठी आयी है
बड़े दिनों के बाद, हम बेवतनों को याद -२
वतन की मिट्टी आई है, चिट्ठी आई है ...


ऊपर मेरा नाम लिखा हैं, अंदर ये पैगाम लिखा हैं -२
ओ परदेस को जाने वाले, लौट के फिर ना आने वाले
सात समुंदर पार गया तू, हमको ज़िंदा मार गया तू
खून के रिश्ते तोड़ गया तू, आँख में आँसू छोड़ गया तू
कम खाते हैं कम सोते हैं, बहुत ज़्यादा हम रोते हैं, चिट्ठी ...


सूनी हो गईं शहर की गलियाँ, कांटे बन गईं बाग की कलियाँ -२
कहते हैं सावन के झूले, भूल गया तू हम नहीं भूले
तेरे बिन जब आई दीवाली, दीप नहीं दिल जले हैं खाली
तेरे बिन जब आई होली, पिचकारी से छूटी गोली
पीपल सूना पनघट सूना घर शमशान का बना नमूना -२
फ़सल कटी आई बैसाखी, तेरा आना रह गया बाकी, चिट्ठी ...


पहले जब तू ख़त लिखता था कागज़ में चेहरा दिखता था -२
बंद हुआ ये मेल भी अब तो, खतम हुआ ये खेल भी अब तो
डोली में जब बैठी बहना, रस्ता देख रहे थे नैना -२
मैं तो बाप हूँ मेरा क्या है, तेरी माँ का हाल बुरा है
तेरी बीवी करती है सेवा, सूरत से लगती हैं बेवा
तूने पैसा बहुत कमाया, इस पैसे ने देश छुड़ाया
पंछी पिंजरा तोड़ के आजा, देश पराया छोड़ के आजा
आजा उमर बहुत है छोटी, अपने घर में भी हैं रोटी, चिट्ठी.


गजल सुनें.


इस गजल को मुम्ताज राशिद ने लिखा है. इसे पंकज उधास ने गाया है. 


चाँदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल
इक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल


जिस रस्ते से तू गुजरे वो फूलों से भर जाये (२)
तेरे पैर की कोमल आहट सोते भाग जगाये
जो पत्थर तो छू ले गोरी वो हीरा बन जाये
तू जिसको मिल जाये वो
तू जिसको मिल जाये वो हो जाये मालामाल
इक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल


जो बेरंग हैं उसपे क्या क्या रंग जमाते लोग (२)
तू नादान न जाने कैसे रूप चुराते लोग
नज़रें जी जी भर के देखें आते जाते लोग
छैल छबीली रानी थोड़ा
छैल छबीली रानी थोड़ा घूँघट और निकाल
इक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल


घनक घटा कलियाँ और तारे सब हैं तेरा रूप (२)
गज़लें हों या गीत हों मेरे सब में तेरा रूप
यूँ ही चमकती रहे हमेशा तेरे हुस्न की धूप
तुझे नज़र ना लगे किसी की
तुझे नज़र ना लगे किसी की जिये हज़ारों साल
इक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल


चाँदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल
इक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल


गजल सुनें


इस गजल को मजरूह सुलतानपुरी ने लिखा है और पंकज उदास ने गाया है. 


ये आरज़ू थी के हंसकर कोई मिला होता
कही तो हमसे किसी का दिल आशना होता
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे


गया फिरा आज का दिन भी उदास करके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे
गया फिरा आज का दिन भी उदास करके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे


सभा भी लायी न कोई पयाम अपनों का
सभा भी लायी न कोई पयाम अपनों का
सुना रही है फ़साने इधर उधर के मुझे
गया फिरा आज का दिन भी उदास करके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे


माफ़ कीजिये
माफ़ कीजिये
के रस्ते नहीं मालूम इस नगर के मुझे
गया फिरा आज का दिन भी उदास करके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे


वो दर्द है के जिसे सह सकूँ न केह पाव
वो दर्द है के जिसे सह सकूँ न केह पाव
मिलेगा चैन तो अब जान से गुजरके मुझे
गया फिरा आज का दिन भी उदास करके मुझे


किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे
गया फिरा आज का दिन भी उदास करके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे
निगाह भरके मुझे


गजल सुनें