New Delhi: फिल्म डायरेक्टर निशा पाहुजा और नेटफ्लिक्स के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है. इस मामले में हाईकोर्ट ने आज यानी 25 जुलाई को केंद्र सरकार का रुख पूछा है, क्योंकि एक डॉक्यूमेंट्री में कथित तौर पर कानून का उल्लंघन करते हुए एक डॉक्यूमेंट्री में नाबालिग गैंगरेप पीड़िता की पहचान उजागर करने का इल्जाम है. 


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क्या है पूरा मामला
झारखंड के एक गांव को केंद्र में रख कर बनाई गई 'टू किल ए टाइगर' एक ऐसे शख्स की पीड़ा बयान करती है, जो अपनी 13 साल की बेटी के लिए न्याय की लड़ाई लड़ता हैं. जिनकी बेटी से तीन लोगों ने गैंगरेप किया था. इस साल 96वें अकादमी पुरस्कारों में फिल्म को 'सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री फीचर' के लिस्ट में शामिल किया गया था. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की पीठ ने 'तुलिर चैरिटेबल ट्रस्ट' की याचिका पर केंद्र के साथ-साथ एमी पुरस्कार के लिए नामित हो चुकीं, फिल्म निर्माता पाहुजा और फिल्म को स्ट्रीम करने वाले ओटीटी प्लेटफॉर्म को नोटिस जारी किया.


पीठ में जस्टिस तुषार राव गेडेला भी शामिल थे. पीठ ने यह देखते हुए इस स्तर पर फिल्म की मौजूदा स्वरूप में स्ट्रीमिंग पर रोक लगाने से इनकार कर दिया कि यह मार्च से ही यहां जनता के लिए उपलब्ध है. याचिकाकर्ता ने इल्जाम लगाया कि फिल्म ने रेप पीड़िता की पहचान उजागर कर दी है, जो घटना के समय 13 साल की थी, क्योंकि उसके चेहरे को ‘छुपाया’ नहीं गया था और यहां तक ​​कि उसे उसकी स्कूल की पोशाक में भी दिखाया गया था.


याचिकाकर्ता के वकील ने क्या कहा?
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, ‘‘फिल्म की शूटिंग साढ़े 3 साल तक चली. उन्होंने (पाहुजा) नाबालिग की पहचान छिपाने की कोई कोशिश नहीं की. फिल्म बनाने में करीब 1,000 घंटे लगे हैं. बेचारी लड़की से (अपनी आपबीती) दोहराने के लिए कहा गया. सभी हिस्से प्रतिवादी नंबर 5 नेटफ्लिक्स के संज्ञान में हैं.’’ इसके साथ ही उन्होंने इल्जाम लगाया कि रेप पीड़िता वयस्क होने के बाद अपनी पहचान प्रकाशित करने की सहमति देने से इनकार नहीं कर सकी, क्योंकि ‘‘एक तरह का स्टॉकहोम सिंड्रोम’’था. इस हालात में कई बार पीड़ित का उस पर अत्याचार करने वाले के साथ ही भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है.


लड़की की इजाजत से रिलीज की गई फिल्म
उन्होंने कहा, "यह डॉक्यूमेंट्री ‘‘अंतरराष्ट्रीय पसंद के अनुरूप है’’ और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम और नाबालिग बलात्कार पीड़ितों की पहचान की सुरक्षा से संबंधित दूसरे कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करती है. केंद्र के वकील ने याचिका पर निर्देश प्राप्त करने के लिए समय मांगा. निजी प्रतिवादियों में से एक के वकील ने कहा कि फिल्म नाबालिग लड़की के माता-पिता की इजाजत से शूट की गई थी और उसके वयस्क होने और उसकी सहमति के बाद रिलीज़ की गई थी. वकील ने तर्क दिया, ‘‘एक बार जब बच्ची वयस्क हो जाती है, तो वह अगर चाहे, तो अपने साथ हुई घटना के बारे में बात कर सकती है.’’ 


अक्टूबर में होगी अगली सुनवाई
उन्होंने कहा, "अगर याचिकाकर्ता का मामला स्वीकार कर लिया जाता है, तो ऐसी घटना पर कोई किताब या फिल्म कभी नहीं बनाई जा सकती जो कि संसद की भी मंशा नहीं थी, जब उसने नाबालिग बलात्कार पीड़ितों की पहचान की सुरक्षा पर कानून बनाए थे. उन्होंने बताया कि डॉक्यूमेंट्री को सबसे पहले 2022 में कनाडा में और इस साल मार्च में भारत में रिलीज़ किया गया था. मामले की अगली सुनवाई आठ अक्टूबर को होगी.