सेब के आकार के शरीर वाले, यानी मोटापे से परेशान लोगों में कोविड-19 से मौत का खतरा ज्यादा रहता है. एक रिसर्च में यह बात सामने आई है. टोक्यो मेडिकल एंड डेंटल यूनिवर्सिटी (TMDU) के रिसर्चरों की तरफ से किए गए शोध से पता चला है कि पेट की चर्बी का संबंध कोविड रोगियों में ज्यादा सूजन और मृत्युदर से है. कोविड के कुछ रोगियों को 'साइटोकिन स्टॉर्म' नामक एक खतरनाक घटना का अनुभव होता है, जिसमें गंभीर सूजन शामिल होती है जो नाटकीय रूप से सांस को प्रभावित करती है और मौत की तरफ ले जाती है.


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खतरनाक है स्थिति


हालांकि यह भविष्यवाणी करना मुम्किन है कि कौन से रोगी इस घटना से गुजरेंगे, क्योंकि उच्च रक्तचाप, मधुमेह, गुर्दे की बीमारी और मोटापा जैसी स्थितियां खतरनाक हैं. विश्वविद्यालय के प्रमुख लेखकों में से एक तदाशी होसोया ने कहा, "कोविड-19 के रोगियों का इलाज करते समय हमने देखा कि मुख्य रूप से पेट की चर्बी वाले मोटे रोगियों को गंभीर बीमारी अधिक परेशान करता है."


कोविड ने की दिक्कत


प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (PNAS) में पिछले महीने प्रकाशित पेपर में होसोया ने कहा, "हमने अनुमान लगाया कि आंतों के वसा ऊतक के संचय ने कोविड-19 में प्रणालीगत भड़काऊ प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा दिया और उच्च जोखिम वाले रोगियों की पहचान करने के लिए एक मार्कर हो सकता है."


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चूहों का किया इस्तेमाल


रिसर्चरों ने जांच करने के लिए मोटापे से ग्रस्त दो तरह के चूहों का इस्तेमाल किया: ओबी और डीबी चूहे. दोनों तरह के चूहों में वसा की अधिकता की वजह से भूख को नियंत्रित करने की क्षमता कम होती है, जिस वजह वे ज्यादा खाने से मोटे हो जाते हैं.


पतले चूहे बच गए


इन दो तरह के मोटे चूहों और गैर-मोटे चूहों को माउस-अनुकूलित सार्स-कोव-2 से संक्रमित किया गया और रिसर्रचरों ने सूजन, फेफड़ों की चोट और मृत्यु जैसे अंजामों के लिए चूहों की निगरानी की. शोधपत्र के लेखक शिंसुके यासुदा ने कहा, "सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण के बाद ओबी चूहों की मौत हो गई, जबकि अधिकांश गैर-मोटे चूहे और यहां तक कि मोटे डीबी चूहों में से ज्यादातर बच गए."


वजन वाले लोगों को ज्यादा हुआ कोविड


उन्होंने नोट किया कि दुबले ओबी चूहों को एक निवारक लेप्टिन पूरक दिए जाने से वे अपने मोटे साथियों के मुकाबले में अधिक बार सार्स-कोव-2 संक्रमण से बचे रहे. हालांकि, चूहों के पहले से ही मोटे हो जाने के बाद लेप्टिन सप्लीमेंट देने से उन्हें संक्रमण से बचने में मदद नहीं मिली. शोधपत्र के अहम लेखक सिया ओबा ने कहा, "हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि अत्यधिक वसा ऊतक साइटोकिन की सक्रियता और सार्स-कोव-2 के उन्मूलन में देरी से संबंधित है." शोधकर्ताओं ने कहा कि श्वेत आबादी की तुलना में एशियाई आबादी में अधिक वजन वाले ज्यादा लोग कोविड की चपेट में आए.


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