मोबाइल इस्तेमाल करने से 10-15 वर्षों के बच्चों को हो रही ये गंभीर बीमारी; AIIMS का खुलासा
Mobile Phone: भारत में 45 साल से ज्यादा उम्र के 34 फीसद लोगों की आंखों की रोशनी कमज़ोर है. एम्स के नेत्र रोग विभाग के अनुमान के मुताबिक, 2050 तक भारत के 40 फीसद बच्चों की आंखें कमजोर हो चुकी होंगी. देर तक पास की चीजों जैसे मोबाइल, किताब या नजदीक से टीवी स्क्रीन पर फोकस करने पर दूर की नजर धुंधली होने लगती है
Children Eyesight Weak: देर तक मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने या वीडियो देखने की वजह से पहले के मुकाबले में अब कम उम्र में ही बच्चों की नजर कमजोर हो रही है. एम्स में हुए अध्ययन में यह पाया गया है कि, पिछले तकरीबन 10-15 बरसों में बच्चों में यह बीमारी तीन गुना तक बढ़ चुकी है. AIIMS के आरपी सेंटर ने साल 2001 में बच्चों में मायोपिया की बीमारी को लेकर एक सर्वे किया गया था. तब दिल्ली में 7 फीसद बच्चों में यह बीमारी देखी गई थी. इसके बाद दस साल बाद 2011 में आरपी सेंटर में हुए सर्वे में 13.5 फीसद बच्चे मायोपिया से पीड़ित पाए गए थे. अब कोरोना के बाद 2023 में हुई स्टडी में यह आंकड़ा बढ़कर 20 से 22 फीसद हो गया है. गांवों में भी बच्चों को चश्मे की जरूरत बढ़ रही है.
शहरों में हर चार में से एक और गांवों में सात में से एक बच्चे को चश्मा लग रहा है. पहले 12 से 13 साल की उम्र में बच्चों में ये समस्या देखी जाती थी और 18-19 की उम्र तक चश्मे का नंबर ठीक रहता था. अब कम उम्र में ही बच्चों को यह समस्या होने लगी है. इसका कारण यह है कि, बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ गया है. बच्चे लगातार दो से तीन घंटे मोबाइल पर गेम खेलते हैं या वीडियो देखते रहते हैं. बहुत लोग तो अपने बच्चों को चश्मा भी जल्दी नहीं पहनाते. इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है. इसलिए चश्मा जरूर पहनाना चाहिए.
आरपी सेंटर में बच्चों के आंखों की बीमारियों के एक्सपर्ड प्रोफेसर डा. रोहित सक्सेना ने बताया कि, तीन हजार स्कूली बच्चों को दो वर्गों में बांट कर एक स्टडी की गई. एक वर्ग के बच्चों को स्कूल में प्रतिदिन आधे घंटे कक्षा से बाहर खेलने का समय दिया जाता था. इस दौरान बच्चों को छांव में योग भी कराया गया. दूसरी कैटेगरी के बच्चों को ऐसा कुछ नहीं कराया गया. स्टडी में पाया गया कि पहली कैटेगरी के बच्चों को नए चश्मे व चश्मे का नंबर बढ़ाने की खास जरूरत नहीं पड़ी. बच्चे अगर रोजाना आधे घंटे भी बाहर खेलें तो आंखों की रोशनी अच्छी बनी रहती है. अगर रोजाना दो घंटे बाहर खेलें और स्क्रीन टाइम कम कर दें तो काफी समय तक नए चश्मे और चश्मे का नंबर बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
स्क्रीन का साइज लैपटॉप या डेस्कटॉप का होना चाहिए. डाक्टर बताते हैं कि, अगर बच्चा नजदीक से या लेट कर किताब पढ़े, आंखों में चुभन महसूस हो और आंख में भैंगापन हो तो ये नजर कमजोर होने के लक्षण हो सकते हैं. इस बीमारी में पास की चीजे तो ठीक दिखती हैं लेकिन दूर की चीजें धुंधली दिखने लगती हैं. घर में मां बाप अक्सर टोकते हैं कि. टीवी पास से मत देखो. नज़र कमजोर हो जाएगी. दरअसरल अगर आप देर तक पास की चीजों जैसे मोबाइल, किताब या नजदीक से टीवी स्क्रीन पर फोकस करते रहते हैं तो दूर की नजर धुंधली होने लगती है आंखों की दूर तक फोकस करने की आदत कम होती जाती है.
भारत में 45 साल से ज्यादा उम्र के 34 फीसद लोगों की आंखों की रोशनी कमज़ोर है. एम्स के नेत्र रोग विभाग के अनुमान के मुताबिक, 2050 तक भारत के 40 फीसद बच्चों की आंखें कमजोर हो चुकी होंगी. मोबाइल, लैपटाप या टैब की स्क्रीन से चिपके भारत को ये सलाह देना बेकार है कि वो स्क्रीन का इस्तेमाल ना करें, लेकिन डॉक्टरों के मुताबिक जितनी बड़ी स्क्रीन होगी, परेशानी उतनी कम होगी. डॉक्टरों की सलाह है कि दूर की चीजों पर बीच बीच में फोकस करते रहें. ज्यादा देर तक स्क्रीन का इस्तेमाल करने वालों के लिए 20-20-20 वाला फॉर्मूला कारगर साबित हो सकता है. इसके तहत 20 मिनट तक स्क्रीन देखने के बाद - 20 सेकेंड का ब्रेक लीजिए और 20 फीट दूर देखिए.
पहले आपकी पलकें एक मिनट में 15 से 16 बार झपकती थी लेकिन स्क्रीन में खोए रहने की वजह से पलकें झपकना ही भूल गई और अब एक मिनट में सिर्फ 6 से 7 बार ही पलकें झपकती हैं . ध्यान दीजिए और पलकें झपकाते रहिए