AIIMS-DELHI में फेफड़ों के कैंसर की शुरुआती स्टेज में होगी पहचान; विकसित की गयी नई तकनीक
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) ने एक नई तकनीक का परीक्षण किया है जिसका उपयोग फेफड़ों के कैंसर को पहले ही शुरुआती स्टेज में पहचानने के लिए किया जा सकता है. इस तकनीक के माध्यम से सीटी स्कैन के जरिए बदलावों की निगरानी की जाएगी, जिससे इलाज समय रहते शुरू किया जा सकेगा जिससे मरीजों के बचने के चांसेस काफी बड़ सकते हैं.
लंग कैंसर, जिसे फेफड़ों के रोग के रूप में भी जाना जाता है, एक गंभीर और लाइफ थ्रेटनिंग बीमारी है जो फेफड़ों की ऊपरी श्वसन पथ में विकसित हो सकती है. यह कैंसर विकसित होने पर फेफड़ों की क्षमता को कमजोर करता है, जिससे सांस लेने में मुश्किलें हो सकती हैं. लंग कैंसर के कारणों में धूम्रपान, प्रदूषण, जेनेटिक अंश, और कई अन्य कारकों का समावेश हो सकता है. लेकिन एक रिसर्च के मुताबिक लगातार सिगरेट पीने वाले लोगों में बाकियों के मुकाबले लंग कैंसर होने का खतरा कई गुना ज्यादा रहता है. आपको बता दें की यह बीमारी आमतौर पर शुरुआती स्टेज में सामान्यत: कोई लक्षण नहीं दिखाती है, जिससे इसे पहचानना बेहद कठिन होजाता है.
इसे में ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) ने एक नई तकनीक का परीक्षण किया है जिसका उपयोग लंग कैंसर को पहले ही शुरुआती स्टेज में पहचानने के लिए किया जा सकता है. इस तकनीक के माध्यम से सीटी स्कैन के जरिए बदलावों की निगरानी की जाएगी, जिससे इलाज समय रहते शुरू किया जा सकेगा जिससे मरीजों के बचने के चांसेस काफी बड़ सकते हैं.
इस तकनीक के बारे में बताते हुए, एम्स के पलमोनरी मेडिसिन डिपार्टमेंट के प्रमुख ने कहा,"यह तकनीक भारत में लंग कैंसर के मरीजों के लिए एक बड़ी कदम हो सकती है. हम इस स्टडी में शामिल होने के लिए 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के हैवी स्मोकर्स से सहयोग कर रहे हैं ताकि हम इस तकनीक का सफलता से परीक्षण कर सकें"
आपको बता दें स्टडी का हिस्सा बनने वाले लोगों को फ्री में सीटी स्कैन किया जाएगा और इससे वे अपने स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त कर पाएंगे. यह स्टडी जल्दी ही समाप्त होने वाली है, इसलिए इंटरेस्टेड लोगों को जल्दी ही आवेदन करने का अनुरोध भी किया जा रहा है. इतना ही नही यह सीटी स्कैन की तकनीक न केवल इलाज का समय रहते शुरू करने में मदद कर सकती है बल्कि इससे लंग कैंसर के मरीजों की उम्र को भी बढ़ाया जा सकता है.
लंग कैंसर का इलाज सामान्यत: रेडिएशन थेरेपी, केमोथेरेपी, और सर्जरी के माध्यम से किया जा सकता है, लेकिन इसकी सही पहचान के बाद एक मरीज के पास आमतौर औसतन 8 से 9 महीने की उम्र ही बाकी रह जाती है लेकिन एम्स की इस नयी तकनीक से लंग कैंसर को उसके शुरुआती दौर मैं ही पहचाना जा सकेगा जिससे लंग कैंसर से पीड़ित मरीजों की लाइफ एस्पेक्टनसी में भी बढ़ोतरी हो सकेगी.