Shimla Mosque Row: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने सोमवार को शिमला के निगम आयुक्त अदालत को निर्देश दिया कि वह राज्य की राजधानी शिमला में मौजूद संजौली मस्जिद के कथित अवैध निर्माण से जुड़े 15 साल पुराने मामले में आठ हफ्ते के भीतर फैसला करे. यह निर्देश निगम आयुक्त अदालत के पांच अक्टूबर के आदेश के बाद सोमवार को विवादित मस्जिद की तीन अनधिकृत मंजिलों को गिराने की प्रक्रिया शुरू होने के कुछ घंटे बाद आया. 


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तोड़ी जा रही मस्जिद
वक्फ बोर्ड की तरफ से इजाजत दिए जाने के बाद मंजिलों को ढहाने का काम शुरू हो गया, लेकिन इस मामले में आखिरी फैसले का इंतजार है. संजौली के निवासियों की तरफ से दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश संदीप शर्मा ने निगम आयुक्त को निर्देश दिए. याचिकाकर्ताओं में से एक और वकील जगतपाल ठाकुर ने कहा, "लंबी बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को संजौली के निवासियों की तरफ से दायर रिट याचिका को स्वीकार कर लिया और नगर निगम को आठ हफ्ते में मुख्य मामले का फैसला करने का निर्देश दिया. साथ ही मामले की सुनवाई करने से पहले सभी हितधारकों को नोटिस देने का भी निर्देश दिया."


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मस्जिद गैरकानूनी
ठाकुर ने कहा कि नगर निगम (एमसी) अधिनियम, 1994 की धारा 254 (6) के मुताबिक, किसी मामले की कार्यवाही छह महीने में बंद हो जानी चाहिए, लेकिन यह विशेष मामला पिछले 15 सालों से लंबित है. उन्होंने कहा, "इसलिए हमने इस मामले में समयबद्ध फैसला देने का अनुरोध करते हुए रिट याचिका दायर की है." याचिकाकर्ताओं ने नगर निगम के एक जूनियर इंजीनियर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया कि मस्जिद की कुछ मंजिलें ही नहीं बल्कि पूरी संरचना गैरकानूनी है. इससे पहले दिन में संजौली मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने मस्जिद की तीन अनधिकृत मंजिलों को ध्वस्त करने का काम शुरू कर दिया. 


मु्स्लिम पक्ष करेगा सुप्रीम कोर्ट का रुख
मस्जिद की प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष मुहम्मद लतीफ ने सोमवार शाम को बताया कि कड़ी पुलिस सुरक्षा के बीच छत को तोड़ने का काम शुरू हुआ. हालांकि, ऑल हिमाचल मुस्लिम्स ऑर्गनाइजेशन (AHMO) ने निगम आयुक्त अदालत के आदेश को अपीलीय प्राधिकरण की अदालत में चुनौती देने और मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने का ऐलान किया था. AHMO के प्रदेश प्रवक्ता नजाकत अली हाशमी ने एक बयान में कहा था कि जिन लोगों ने अभ्यावेदन दिया था, उन्हें ऐसा कोई भी अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का कोई अधिकार नहीं था और निगम आयुक्त अदालत की तरफ से पारित आदेश तथ्यों के विपरीत हैं.