बिहार में 100 से ज्यादा गांव ऐसे हैं जहां पर हिंदू परिवार ताजिया जूलूस निकालते हैं. बिहार के नवादा जिला में भटविगहा गांव है. यहां पर 1200 लोग रहते हैं. लेकिन यहां एक भी मुस्लिम नहीं है. शनिवार को यहां मोहर्रम मनाया गया. लोग ताजिया लेकर अपने घर से निकाले. दैनिक भास्कर ने एक ग्रामीण पंकज कुमार के हवाले से लिखा है कि " यह उनकी चौथी पीढ़ी है जो मोहर्रम मना रही है." 


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हर त्योहार की तरह मनाते हैं मोहर्रम


एक दूसरे ग्रामीण कैलाश चौधरी बताते हैं कि "यहां के लोग जैसे हिंदू त्योहारों को मनाते हैं वैसे ही मुहर्रम भी मनाते हैं." उनका कहना है कि उनके पूर्वजों ने मनोकामनाएं पूरी होने के लिए यह परंपरा शुरू की थी. गांव वालों का कहना है कि यह उनकी अपनी आस्था है. इसमें जाति, धर्म आड़े नहीं आता है. 


हिंदू कराते हैं फातिहा 


नवादा में और इसके आस-पास तकरीबन 100 गांव हैं जहां पर हिंदू मोहर्रम मनाते हैं और ताजिया रखते हैं. इन गावों में करूणा, बेलदारी, पसई और सिरपतिया शामिल हैं. इन गावों के लोगों का कहना है कि वह कई पीढ़ियों से मोहर्रम मनाते आए हैं. वह मोहर्रम के लिए खुद ही ताजिया बनाते हैं. वह फातिहा कराने के लिए मुजाविर को बुलाते हैं. 


हिंदू बनाते हैं ताजिया


नवादा सामाजिक सौदार्द बिगाड़ने के लिए जाना जाता है. लेकिन जिले में हिंदू और मुस्लिम काफी मिलजुल कर रहते हैं. यहां 100 गांव ऐसे हैं जहां पर सिर्फ हिंदू हैं. लेकिन ये लोग मोहर्रम मनाते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक सिरदला थाने में 64 जगहों पर ताजिया बनाई जाती है. इसमे 38 हिंदू ताजियादार हैं. भलुआ, सिंघौली और हजारा ऐसे गांव हैं जहां पर सिर्फ हिंदू ही ताजिया बनाते हैं. 


ताजिया का इतिहास


ताजियादारी के बारे में बताया जाता है कि साल 1398 में बादशाह तैमूर लंग ने हजरत इमाम हुसैन की याद में एक ढांचा बनाया था जिसे बाद में ताजिया कहा गया. कहा जाता है कि भारत में सबसे पहले हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने ताजिया रखी थी.