SC On Bulldozer Action: बुलडोज़र कार्रवाई मामले के खिलाफ देश की तमाम अपोजिशन पार्टियों समेत कई सामाजिक और धार्मिक संगठन विरोध कर रहे हैं. इस तरह की कार्रवाई को लेकर सरकार और प्रशासन दोनों पर ये संगठन सवाल खड़े कर रहे हैं. अब इस कार्रवाई को लेकर मुसलमानों की सबसे बड़ी संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एक सुझाव मसौदा तैयार किया है, जिसे जल्द ही अदालत में प्रस्तुत करेगी.


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जमीयत उलमा-ए-हिंद की अगुआई वाली इस मसौदे को वकीलों की एक टीम ने अलग-अलग पहलूओं की गहराई से समीक्षा को लेकर नेशनल लेवल पर इस सिलसिले में अदालत द्वारा "Rules And Regulations" निर्धारित करने के लिए सुझावी मसौदे में कई अहम सुझाव दिए हैं.


कैसे बढ़ा बुलडोज़र कार्रवाई का प्रचलन?
उल्लेखनीय है कि साल 2022 में दिल्ली के जहांगीरपुरी की मुस्लिम बस्ती पर गैर-कानूनी तरीके से बुलडोज़र चलाया गया था. इसके बाद से बुलडोज़र का इस्तेमाल देखते ही देखते अन्य राज्यों तक पहुंच गया. खासतौर पर जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं.


बुलडोज़र की इस कार्रवाई को "बुलडोज़र न्याय" का नाम दिया गया. लेकिन इस तरह की कार्रवाई को लेकर देशभर के एक वर्ग में गुस्सा भी है. इसी "बुलडोज़र अन्याय" के खिलाफ जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और अदालत से तुरंत हस्तक्षेप करने का दरख्वास्त किया था.


SC ने बुलडोजर कार्रवाई पर दिया था ये आदेश  
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने मौलाना अरशद मदनी के हिदायत पर 26 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट में एक पिटीशन दाखिल की थी जिस पर अब तक 19 सुनावायां हो चुकी हैं. जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए 20 अप्रैल 2022 को शीर्ष अदालत ने बुलडोज़र चलाने पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था और ‘यथास्थिति’ बनाए रखने का हु्क्म दिया था जो अब तक जारी है.


जमीयत की तरफ से कपिल सिब्बल ने रखा पक्ष
अलग-अलग सुनवाइयों पर जमीयत उलमा-ए-हिंद की तरफ से सीनीयर वकीलों कपिल सिब्बल, सी.यू.सिंह, नित्या रामाकृष्णन ने अपना पक्ष रखा, जबकि उनके सहयोगी के तौर पर ऐडवोकेट आन-रिकार्ड कबीर दिक्षित, ऐडवोकेट निज़ामुद्दीन पाशा, ऐडवोकेट सारिम नवेद, ऐडवोकेट शाहिद नदीम, ऐडवोकेट आरिफ अली, ऐडवोकेट मुजाहिद अहमद व अन्य शामिल हुए.


जमीयत उलमा-ए-हिंद ने अपनी पिटीशन में कानून एवं न्याय मंत्रालय, भारत संघ, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तरी दिल्ली नगर निगम और दिल्ली पुलिस को पक्ष बनाया था,  जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस भी जारी किया था. जमीयत की याचिका के साथ अन्य पक्षों ने भी बुलडोज़र कार्रवाई के खिलाफ पिटीशन दाखिल की थी लेकिन उसमें उन्होंने बुलडोज़र चलाने वाले सभी राज्यों को पक्ष बनाने की जगह पर विशिष्ट प्राधिकरणों को पक्ष बनाया था.


SC ने सुनवाई के दौरान क्या कहा?
 23 सितंबर 2022 को सुनवाई के बीच सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से जमीयत उलमा-ए-हिंद समेत सभी पिटीशन्स को खत्म करने का यह कहते हुए संकेत दिया था कि अब बुलडोज़र चलाने पर रोक लग चुकी है तो इस मामले को समाप्त कर देना चाहिए. लेकिन इस पर जमीयत के वकीलों ने अदालत से दरख्वास्त किया कि फ्यूचर में  फिर किसी गरीब का घर बुलडोज़र का शिकार न हो इसलिए अदालत को पूरे देश के लिए गाइडेंश जारी करना चाहिए.


डेढ़ साल तक रुकी रही सुनवाई
वहीं, जमीयत के वकीलों की याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत ने इस मुक़दमे की सुनवाई स्थगित कर दी थी, जो करीब डेढ़ साल तक रुकी रही. लेकिन हाल ही में फिर से जैसे ही मध्य प्रदेश और राजस्थान में बुलडोज़र की कार्रवाई की गई तो जमीयत के वकीलों ने कोर्ट से तुरंत हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया. इसके बाद 2 सितंबर को मुक़दमे की सुनवाई हुई और सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बैंच के जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन ने बुलडोज़र कार्रवाई पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाने का हुक्म  दिया.


क्या सियासी दबाव में अफसर नियम का करते हैं उल्लंघन?
इसी बीच, इस संबंध में अदालत ने जमीयत समेत अन्य पक्षों से सुझाव मांगे. जमीयत पहले दिन से यह रुख अपनाया हुआ है कि देश के किसी भी राज्य में किसी भी व्यक्ति की प्रोपर्टी पर बुलडोज़र नहीं चलना चाहिए. नगरपालिका कानून के मुतबिक,  बुलडोज़र चलाने का नियम पहले से मौजूद है, लेकिन अफसर उन नियमों का उल्लंघन करते हुए सियासी दबाव में एक खास समुदाय के लोगों की घर पर बुलडोज़र चलाते हैं, यह बुलडोज़र कार्रवाई "बुलडोज़र न्याय" नहीं बल्कि "बुलडोज़र का दुरुपयोग" है जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कार्रवाई की है.