Roza Rakhne Aur Kholne Ki Dua: माह-ए- रमजान की आमद हो गई है. 12 मार्च से मुबारक माह का आगा़ाज़ हो रहा है. हर कोई इस खास महीना का इस्तकबाल करने के लिए तैयार है. बाजार सहरी और इफ्तार की चीजों से गुलजार हैं.  हर कोई अपने रब की रजा के लिए रोजे रखकर खास इबादत करेगा और अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी का तलबगार होगा. रमजान में रोजा खोलने से पहले और सुबह में सेहरी के वक़्त एक खास दुआ पढ़ी जाती है. जब लोग सेहरी के वक्त उठते हैं तो , यकीकन उनकी यहीं नीयत होती है कि वो आज का रोजा रखेंगे. बेशक नीयत दिल के इरादे का नाम है. जब इंसान किसी चीज की नीयत का इरादा दिल में करता है तो ये काफी होता है.


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रब इंसानों के दिलों की बात जानता और समझता है. इसलिए रोज़ा रखने और इफ्तार से पहले अरबी में किसी दुआ का पढ़ना ज़रूरी नहीं है. फिर भी अगर कोई जबान से रोज़े और इफ्तार की नीयत कर ले तो और बेहतर है. मौलवी अबरार अहमद कासमी कहते हैं,  "अगर कोई शख्स अपनी जुबान में या अपनी बोल चाल की भाषा में इतना कह दे कि ऐ मेरे अल्लाह/ रब / पाक परवरदीगार मैं तेरी रज़ा/ ख़ुशी के लिए रमजान के कल के फ़र्ज़ रोज़े की नीयत करता हूं तो इतना ही काफी है. ऐसी ही अगर कोई रोज़ेदार इफ्तार के वक़्त अपनी जुबान से इतना ही कह दे कि ऐ मेरे अल्लाह/ रब / पाक परवरदीगार मैं तेरी रज़ा/ ख़ुशी के लिए रोज़े रखा और तेरे ही हुक्म के मुताबिक तेरे दिए खाने से इफ्तार करता हूं तो, इतना ही काफी है. अगर कोई दिल में ही ये बात सोच ले तो भी उसकी नीयत हो जाती है. 
 
सेहरी या रोज़ा रखने की नीयत अरबी में एक खास दुआ को पढ़कर भी की जाती है.  अगर आप को ये दुआ अरबी में करनी हो तो आज हम आपको सेहरी की दुआ आसान जबान में समझाएंगे. ये दुआ आप हिन्दी, रोमन और अरबी में पढ़ सकते हैं. अगर आपको अरबी पढ़ने में कोई दिक्कत पेश आती है तो आप इस दुआ को हिन्दी में आसानी से पढ़ सकते हैं. वहीं, रोज़ा खोलने के वक्त की भी एक खास दुआ है. लेकिन ज्यादातर लोगों को ये मालूम नहीं. इसलिए अब आपको परेशान होने की कोई जरूरत नहीं हैं. आप हिन्दी में आसानी से इन दुआओं को पढ़ सकते हैं. 


रोज़ा रखने की दुआ


وَبِصَوْمِ غَدٍ نَّوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ


व बि सोमि गदिन नवई तु मिन शहरि रमज़ान


Wa bisawmi ghadinn nawaiytu min shahri Ramadan



 


रोज़ा खोलने की दुआ


اَللّٰهُمَّ اِنَّی لَکَ صُمْتُ وَبِکَ اٰمَنْتُ وَعَلَيْکَ تَوَکَّلْتُ وَعَلٰی رِزْقِکَ اَفْطَرْتُ


अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुमतू व-बिका आमन्तु व-अलैका तवक्कलतु व अला रिजकिका अफ्तरतु


Allahumma inni laka sumtu wa bika amantu wa alayka tawakkaltu wa ala rizqika aftarthu