आजम खान को एक और झटका; जौहर यूनिवर्सिटी की आखिरी उम्मीद भी सुप्रीम कोर्ट में ध्वस्त!
उत्तर प्रदेश के रामपुर में जौहर विश्वविद्यालय की भूमि लीज रद्द करने के खिलाफ याचिका शीर्ष अदालत में खारिज हो गयी है. इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस याचिका को यह कहते हुए ख़ारिज कर दी थी कि ट्रस्ट ने करार का उलंघन कर ज़मीन का दूसरे काम में इस्तेमाल किया था.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले में समाजवादी पार्टी (SP) के नेता आजम खान की सदारत वाले ट्रस्ट द्वारा संचालित मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की जमीन की लीज रद्द करने को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी है. इस मामले में प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है.
ट्रस्ट पर करार तोड़ने का इलज़ाम
इससे पहले हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ज़मीन की लीज रद्द किये जाने के खिलाफ मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की कार्यकारी समिति की याचिका खारिज कर दी थी. राज्य सरकार ने लीज शर्तों के उल्लंघन का हवाला देते हुए ट्रस्ट को दी गई 3.24 एकड़ ज़मीन का पट्टा रद्द कर दिया था. सरकार का कहना है कि यह ज़मीन मूल रूप से एक शोध संस्थान के लिए आवंटित की गयी थी, लेकिन वहां एक स्कूल चलाया जा रहा था, करार का उलंघन था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने न्यास का प्रतिनिधित्व कर रहे सीनियर वकील कपिल सिब्बल की दलीलों का संज्ञान लिया है, और उत्तर प्रदेश सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा कि किसी भी बच्चे को उपयुक्त शैक्षणिक संस्थान में दाखिले से महरूम नहीं किया जाए.
सरकार ने ख़ारिज की ट्रस्ट की दलील
सिब्बल ने दलील दी थी कि 2023 में पट्टे को रद्द करने का फैसला बिना कोई वजह बताए लिया गया था. उन्होंने कहा, ‘‘अगर उन्होंने मुझे नोटिस जारी किया होता और वजह बताई गयी होती , तो मैं इसका जवाब दे सकता था, क्योंकि, आखिरकार, मामला कैबिनेट के पास गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री ने (भूमि आवंटन पर) फैसला लिया था. ऐसा नहीं है कि मैंने कोई फैसला लिया.’’
इस मामले में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा ज़मीन के पट्टे को रद्द करने के 18 मार्च के आदेश को चुनौती देने वाली ट्रस्ट की याचिका खारिज कर दी थी. न्यास की कार्यकारी समिति ने तब दलील दी थी कि सुनवाई का कोई मौका दिए बिना ही पट्टा विलेख रद्द कर दिया गया था. हाई कोर्ट में राज्य की तरफ से पेश हुए महाधिवक्ता ने बिना ‘कारण बताओ नोटिस’ के पट्टा रद्द करने का बचाव इस बुनियाद पर किया था कि जनहित सबसे पहले है. यह दलील दी गयी थी कि उच्च शिक्षा (शोध) संस्थान के मकसद से अधिगृहीत ज़मीन का उपयोग एक स्कूल चलाने के लिए किया जा रहा था. महाधिवक्ता ने विशेष जांच दल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि पट्टा रद्द करने से पहले याचिकाकर्ता को जवाब देने के लिए माकूल मौका दिया गया था.