Eid-Ul-Adha 2023: ईद-उल-अज़हा का त्योहार करीब आ रहा है. भारत में 29 जून को ईद उल अज़हा का त्योहार मनाया जाएगा. वहीं बात करें सऊदी अरब की तो ये 28 तारीख को होगी. बकरीद आने पर लोगों के मन में अकसर सवाल रहता है कि ईद-उल-अज़हा आखिर क्यों मनाई जाती है और क्या इसका हज से कोई ताल्लुक है. इसके बारे में हम आपको पूरी जानकारी देने वाले हैं. तो चलिए जानते हैं.


दो तरह की होती हैं ईद


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आपको जानकारी के लिए बता दें ईद दो तरह की होती है. पहली ईद-उल-फित्र जो रमजान के महीने के पूरे होने पर और सव्वाल के महीने की पहली तारीख को मनाई जाती है. वहीं दूसरी होती है ईद उल अज़हा. ये ईद के दो माह 10 दिन बाद मनाई जाती है. इसे हज वाले माह में मनाया जाता है.


क्या ईद उल अजहा का हज से कोई ताल्लुक है?


कई लोगों के मन में ये सवाल रहता है, लेकिन आपको बता दें ईद-उल-अज़हा का सीधे तौर पर हज से कोई ताल्लुक नहीं है. लेकिन ये हज के पूरा होने के एक दिन बाद मनाई जाती है.


कब मनाई जाती है ईद उल अज़हा? (When Eid-Al-Adha celebrated)


इस्लामिक कलेंडर के आखिरी महीने की 10 तारीख को ईद-उल-अज़हा मनाई जाती है. इस महीने को ज़िल्हिज्जा भी कहते हैं. यही महीना है जिसमें दुनिया भर के मुसलमान हज करने सऊदी अरब के शहर मक्का जाते हैं.


क्यों मनाई जाती है ईद-उल-अज़हा? (Why Eid-Al-Adha celebrated)


ईद-उल-अज़हा में कुरबानी देने के पीछे इस्लाम के पैगम्बर  हज़रत इब्राहिम (स.) और उनके बेटे इस्माइल का एक किस्सा है, और इसे सुन्नत माना गया है.  एक दिन हज़रत इब्राहिम के ख्वाब में खुदा की बशारत हुई, जिसमें उनकी सबसे कीमती और अजीज चीज कुर्बान करने की बात कही गई थी. ये एक तरह का  हज़रत इब्राहिम का इम्तिहान था.  इब्राहिम जब सुबह उठे तो काफी परेशान थे. उन्होंने इस बात का जिक्र अपनी बीवी और बेटे इस्माइल से किया. जिसपर इस्माइल ने अल्लाह के इस हुक्म पर अमल करने की बात कही. लेकिन आखिर किसी बाप के लिए सबसे अजीज चीज उसकी औलाद होती है, इसलिए हज़रत इब्राहिम ने खुदा की रहा में बेटे को ही कुरबान कर देने का फैसला किया. इसके बाद दोनों बाप-बेटे जंगल की ओर निकल पड़े.


माथे के बल इब्राहिम को लेटाया


मौलाना तारिक जमील अपने एक बयान में बताते हैं कि रहम ना आ जाए इसलिए इब्राहिम ने इस्माइल को माथे के बल लिटा दिया और आसमान की ओर देखा और अल्लाह से दुआ की. जब इब्राहिम की बात सातवें आसमान तक पहुंची तो फरिश्ते भी रो पड़े. जिसके बाद इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांधी और छूरी चलाई. जब उन्होंने आंख खोली तो सामने एक बकरा हलाल हुआ था और इस्माइल बराबर में खड़े थे, और उन्हें खरोच तक नहीं थी. इस तरह अल्लाह ने अपने बन्दे का इम्तिहान लिया और वो इसमें कामयाब रहे. इसके बाद से ही लोग खुदा की राह में बकरा या किसी अन्य जानवर की कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हुई.