बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी नहीं लड़ सकेगी चुनाव; इन वजहों से लगा दी गई रोक
Bangladesh Election: बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने मुल्क की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी को आम इलेक्शन में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी है. बांग्लादेश में अगले साल 7 जनवारी को इलेक्शन होने जा रहे हैं और मुख्य वीपक्षी पार्टी बीएनपी समेत कई दलों ने इस इलेक्शन की बहिष्कार की धमकी दे रहे हैं. पूरी खबर पढ़ने के लिए नीचे स्क्रॉल करें.
Bangladesh Election: बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने मुल्क की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी को आम इलेक्शन में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी है. दरअसल, बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी ने SC में याचिका दायर कर 2013 में लगाए गए बैन को हटाने की गुजारिश की थी, लेकिन उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक नियमों का हावला देते हुए जमात-ए-इस्लामी पार्टी को इलेक्शन लड़ने पर रोक लगा दी थी. इसके बाद इलेक्शन कमीशन ने भी इसका पंजीकरण रद्द कर दिया था.
जमात की बांग्लादेश में इस वजह से होता है विरोध
हालांकि तब कोर्ट ने इसके राजनीति में हिस्सा लेने पर रोक नहीं लगाई थी, लेकिन इलेक्शन एक दल के रूप में नहीं लड़ सकती थी. कोर्ट का यह फ़ैसला उस वक्त आया था, जब जमात पर पूरी तरह बैन लगाने की मांग की जा रही थी, क्योंकि वह 1971 में पाकिस्तान के ख़िलाफ बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई के खिलाफ थी. बंग्लादेश में इसी वजह से जमात की विरोध होती है.
जमात के इस पार्टी से है करीबी रिश्ता
मुल्क के मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के साथ जमात के करीबी रिश्ते हैं. 2001 से 2006 के बीच जमात सत्ता की भागीदार थी. जब बांग्लादेश के पीएम खालिदा जिया थीं. बांग्लादेश में अगले साल 7 जनवारी को इलेक्शन होने जा रहे हैं और मुख्य वीपक्षी पार्टी बीएनपी समेत कई दलों ने इस इलेक्शन की बहिष्कार की धमकी दे रहे हैं. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि पीएम शेख हसीना के मौजूदगी में चुनाव नहीं हो सकते हैं.
इस पार्टी ने चुनाव बहिष्कार करने की दी धमकी
बांग्लादेश में अगले साल होने वाले चुनावों में पीएम शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग लगातार चौथी बार सत्ता में वापसी करना चाहेगी, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की पार्टी ने इलेक्शन के बहिष्कार करने की धमकी दी है. इस बीच जमात-ए-इस्लामी ने भी कहा था कि वह शेख हसीना के सत्ता पर रहते हुए इलेक्शन का बहिष्कार करेगी. हालांकि, कोर्ट के फ़ैसले के बाद उसके प्रत्यक्ष तौर पर इलेक्शन लड़ने की उम्मीदें वैसे ही ख़त्म हो चुकी हैं.
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