Pakistan Economic Crisis: पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. लाख कोशिशों के बावजूद भी महंगाी कम होती नजर नहीं आ रही है. पाकिस्तान का कर्ज उसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के मुकाबले में तेजी से बढ़ रहा है. इसका मतलब यह है कि अर्थव्यवस्था की उत्पादन बढ़ाने की क्षमता बाधित है. इस्लामाबाद थिंक टैंक टैबएडलैब की तरफ से एक रिपोर्ट जारी की गई है. जिसके मुताबिक "यह परिवर्तनकारी बदलाव की जरूरत बताता है. जब तक यथास्थिति में वसही तौर पर सुधार और बदलाव नहीं होंगे, पाकिस्तान और गहरे समंदर में डूबता रहेगा, एक अपरिहार्य डिफ़ॉल्ट की ओर बढ़ेगा, जो चक्रव्यूह की शुरुआत होगी.


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टैबएडलैब ने कहा कि पाकिस्तान का कर्ज "एक विकट, अस्तित्वगत और प्रासंगिक" चैलेंज है, जिसके लिए फौरी तौर पर और रणनीतिक हस्तक्षेप की जरूरत है. कर्ज की अदायगी तारीखी ऊंचाई पर है, जो बढ़ती आबादी की सामाजिक सुरक्षा, तालीम, सेहत और अहम तौर पर  जलवायु परिवर्तन जैसी ज़रूरतों को प्राथमिकता से महरूम करता है. पाकिस्तान का विदेशी कर्ज 2011 के बाद से लगभग दोगुना हो गया है, और घरेलू कर्ज छह गुना तक बढ़ गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि फाइनेंशियल एयर 2024 में पाकिस्तान को अनुमानित 49.5 अरब अमेरिकी डॉलर का ऋण परिपक्वता अवधि में चुकाना होगा (जिसमें से 30 फीसद ब्याज है, और इसमें से कोई भी द्विपक्षीय या आईएमएफ ऋण नहीं है.


 


उत्पादक क्षेत्रों या उद्योग में इंवेस्टमेंट के बिना, उपभोग-केंद्रित, आयात-आदी इकानॉमी को बढ़ावा देने के लिए ऋण संचय का भारी उपयोग किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान की ऋण प्रोफ़ाइल फिक्र का विषय है, और इसकी उधार लेने और खर्च करने की आदतें अस्थिर हैं. बढ़ती आबादी की बढ़ती मांगों के लिए सामाजिक सुरक्षा, सेहत, तालीम और जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदाओं, अनुकूलन रणनीतियों और हरित संक्रमण के लिए ज्यादा पैसों की जरूरत होती है. इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान की जलवायु और कर्ज की कमजोरी एक-दूसरे को बढ़ाती है, लेकिन एक ही वक्त में अस्तित्व संबंधी दोनों समस्याओं में तालमेल बिठाने और उन्हें कम करने का मौका है.