Sheikh Hasina: तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहे बांग्लादेश में क्यों हिंसक हुए छात्र और हसीना का होना पड़ा फरार
Bangladesh News: शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था लगातार मजबूत हो रही थी, जिसे देखते हुए भारत और चीन तक वहां निवेश करना चाहते थे. लेकिन अचानक ऐसा क्या हो गया कि करीब डेढ़ दशक से सत्ता पर काबिज हसीना खुद अपने देश को छोड़कर भागना पड़ा? इस लेख में जानते हैं वे 3 घटनाएं, जिसके चलते शेख हसीना को 15 साल की सत्ता गंवानी पड़ी...
Sheikh Hasina: बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. वे सेना की स्पेशल हेलीकॉप्टर से ढाका से भारत पहुंच चुकी हैं. शेख हसीना यहां से दो दिन बाद लंदन के लिए रवाना होंगी. बांग्लादेश के आर्मी चीफ वकार-उज़-ज़मान ने कहा कि सेना अंतरिम सरकार बनाएगी.
हिंसक प्रदर्शन को देखते हुए राजधानी ढाका समेत देशभर में सेना तैनात कर दी गई है. कुछ वक्त पहले तक शेख हसीना की दुनिया के प्रभावशाली नेताओं में गिनती हो रही थी. उन्हें पिछले 15 सालों में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को बदलने के लिए मसीहा कहा जाता था. शेख हसीना ने पड़ोसी देश म्यांमार में उत्पीड़न से देश छोड़कर भाग रहे लगभग 10 लाख रोहिंग्या मुसलमानों को शरण लेने की जगह दी. इसको काम को लेकर इंटरनेशनल लेवल उनकी जमकर तारीफ हुई थी.
ढाका हाईकोर्ट के फैसले से भड़के सामान्य वर्ग के छात्र
बांग्लादेश साल 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर देश बना था. इससे पहले इस देश को पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था. इसी साल वहां पर 80 फीसदी कोटा सिस्टम लागू हुआ, जिममें मुक्ति संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार वालों को सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी का रिजर्वेशन देने का प्रावधान है. साथ ही पिछड़े जिलों के लिए 40 फीसदी और महिलाओं के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया. वहीं सामान्य कोटे के स्टूडेंट्स के महज 20 फीसदी सीटें रखी गईं.
हालांकि, साल 1976 में विरोध के बाद पिछड़े जिलों के लिए आरक्षण में कटौती कर 20% कर दिया गया. जिसका फायदा सामान्य कैटेगरी के छात्रों को मिला. उनके लिए 40 फीसदी सीटें रिजर्व्ड हो गईं. लेकिन साल 1985 में सामान्य में कैटेगरी के कोटे में 5 फीसदी और बढ़ा दी गई. क्योंकि पिछड़े जिलों के रिजर्वेशन में 10 प्रतिशत और कटौती कर दी गईं. इस तरह से सामान्य छात्रों के लिए 45% सीटें हो गईं.
शुरुआत में स्वतंत्रता सेनानियों के बेटे-बेटियों को ही सिर्फ रिजर्वेशन मिलता था, लेकिन कुछ सालों बाद इस कोटे से मिलने वाली सीटें खाली रहने लगीं जिसका फायदा जेनरल कैटेगरी छात्रों को मिलने लगा. हालांकि, सरकार ने साल 2009 में फैसला लेते हुए स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को भी इसका लाभ देने लगा.
जिसकी वजह से सामान्य वर्ग के स्टूडेंट्स की नाराजगी बढ़ गई. हालांकि, साल 2018 में 4 महीने तक छात्रों के भारी विरोध के बाद हसीना सरकार ने कोटा सिस्टम पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया. लेकिन 5 जून 2024 को ढाका हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सरकार को पुराना कोटा सिस्टम बहाल करने का आदेश जारी किया. जिससे जेनरल कैटेगरी के स्टूडेट्स भड़क गए और सड़कों पर उतर आए. परिणाम स्वरूप हसीना को सत्ता गंवी पड़ी.
प्रदर्शनकारियों को पाक समर्थक रजाकार बोलकर अपनी ही चक्रव्यूह में फंसी
दरअसल, पीएम शेख हसीना ने कोर्ट के आदेश के बाद एक इंटरव्यू में 14 जुलाई को कहा था, "अगर स्वतंत्रता सेनानियों के बेटे-पोते को रिजर्वेशन नहीं मिलेगा तो क्या रजाकारों के पोते-पोतियों को आरक्षण मिलेगा?" पीएम की रजाकारों ( गद्दारों ) वाले इस बयान के बाद ढाका में चल रहा आरक्षण विरोधी प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया. ढाका विश्विद्यालय समेत देशभर में 'तूई के, आमी के रजाकार, रजाकार' जिसका मतलब "तुम कौन, गद्दार, गद्दार" के नारे गूंजने लगे. प्रदर्शनकारियों ने सरकारी टेवलीजिन चैनल को आग के हवाले कर दिया, जिसके बाद कार्रवाई में करीब एक महीने में 300 से ज्यादा लोगों को जान चली गई, जिनमें से ज्यादातर स्टूडेंट्स थे.
आखिर कौन है 'रजाकार', प्रदर्शनकारी ये शब्द सुनकर क्यों भड़के?
पाकिस्तान-बांग्लादेश के बीच 1971 में हुए जंग में पाकिस्तान ने सरेंडर कर दिया था. सरेंडर किए 2 दिन गुजर गए थे, लेकिन 18 दिसंबर ढाका में एक-एक कर 125 लाशें मिलीं, जो बांग्लादेश की मशहूर हस्तियां थीं. सभी लोगों को बेदर्दी से मौत के घाट उतारा गया था. इन लोगों की पहचान कर पाना भी मुश्किल हो रहा था. ये वे लोग थे, जिन्हें 'रजाकारों' ( गद्दारों ) ने 300 लोगों के साथ बंधक बनाया था. इन लोगों को बंधक इसलिए बनाया गया था कि आगे बढ़ रहे भारतीय सेना से बात मनवा सकें. लेकिन पाकिस्तान ने इससे पहले ही बांग्लादेश के आगे घुटने टेक दिए, जैसी ही इसकी भनक रजाकारों को लगी उन्होंने इन लोगों को मार डाला.