इजराइल-फिलिस्तीन जंग ने खोल दी UNO और मुस्लिम ब्रदरहुड की पोल; सब US के दलाल!
Israel-Palestine War: इजराइल और फिलिस्तीन के बीच जंग जारी है. इस सब के बीच कई ऐसे सवाल हैं जो लोग यूएन और अरब देशों से पूछ रहे हैं. पूरी खबर पढ़ने के लिए स्क्रॉल करें.
Israel Palestine War Update: इजराइल और फिलिस्तीन के बीच जंग जारी है. इस युद्ध में अबतक 11 हजार से ज्यादा फिलिस्तीनियों की जानें जा चुकी हैं. इजरायली डिफेंस फोर्सेज गाजा में घुस चुकी हैं और हर रोज लोगों की जानें जा रही हैं. गज़ा पूरी तरह बर्बाद हो चुका है. गज़ा में रहने वाले लगभग 10 लाख लोग बेघर हो चुके हैं. जो कल तक अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे थे, अब बाकी की ज़िन्दगी रिफ्यूजी बनकर कैम्पों में गुजारेंगे. इस जंग से जहाँ कई सवाल खड़े होते हैं, वहीँ इसने एक साथ कई चीज़ों को बेनकाब कर दिया है. यूएनओ एक फर्जी और गैर- ज़रूरी संगठन साबित हुआ है, जो सिर्फ अमेरिका के हाथों की कठपुतली है. इस्लामिक देशों के बीच भाईचारे का सवाल भी एक सफ़ेद झूठ के अलावा कुछ नहीं है. 1948 में इजराइल बनने के बाद से ये मुल्क लगातार फिलिस्तीन पर कब्जा करता आ रहा है, लेकिन अब जब दो मुल्क जंग में हैं तो अरब मुमालिक केवल मूक दर्शक बने हुए हैं.
यूएनओ पर उठते सवाल
यूएनओ यानी युनाइटेड नेशन ऑर्गनाइजेशन का गठन दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद 1945 में इसी मकसद के साथ किया गया था कि ये इंटरनेशनली शांति और स्टेबिलिटी ला सके. इसके साथ ही उन लोगों तक मानवीय सहायता पहुंचा सके जिन्हें सही में इसकी जरूरत है. इसे बनाने का मकसद था कि अंतराष्ट्रीय नियमों का पालन किया जा सके और ह्यूमन राइट को प्रोटेक्ट किया जा सके, लेकिन यूएनओ इजराइल और फिलिस्तीन की जंग में पूरी तरह फेल होता दिखा है. 1864, जेनेवा कन्वेंशन साफ तौर पर सिविलियन की सिक्योरिटी की बात करता है, लेकिन हमास और इजराइल के बीच चल रही इस जंग में हजारों बच्चों, बूढ़ों, नौजवानों और औरतों की जानें जा चुकी हैं. बेंजामिन नेतन्याहू ने तो यूएन के अध्यक्ष तक को हटाने की बात कर दी है. ये साफ तौर पर दिखाता है कि यूएन केवल अमेरिका और यूरोपीय देशों का पिट्ठू है. फिलिस्तीन में बड़े पैमाने पर नरसंहार हो रहा है, लेकिन यहां ह्यूमन राइट्स की वकालत करने वाली दुनिया की तमाम एजेंसियां और संगठन इसपर मौन है.
सफ़ेद हाथी साबित हुआ मुस्लिम ब्रदरहुड
इस जंग ने अरब देशों और मुस्लिम एकता की भी पोल खोल दी है. इस जंग से साफ हो गया है कि आज मुस्लिम देश किस पॉजीशन पर खड़े हैं. यमन और ईरान के अलावा किसी देश ने सीधे तौर पर फिलिस्तीनियों के लिए हाथ नहीं बढ़ाया है. हाल ही में हुई आईओसी की मीटिंग ने ये साफ कर दिया है कि अरब मुमालिक आलोचनाओं के अलावा फिलिस्तीनियों के लिए कुछ नहीं कर सकते हैं. इस मीटिंग में एक प्रस्ताव लाया गया, जिसमें मांग की गई कि मुस्लिम देशों के इजराइल से सभी राजनयिक और आर्थिक रिश्ते तोड़े जाएं और हवाई क्षेत्र पर भी पाबंदी आयद की जाए, लेकिन सऊदी अरब, यूएई, बहरीन, सूडान, मोरक्को, मॉरिटानिया, जिबूती, जॉर्डन और मिस्र ने इन मांगों को खारिज कर दिया और प्रस्ताव पास नहीं हो पाया. उधर गाजा से सटे मिस्र ने बॉर्डर पर मुस्तैदी बढ़ा दी है ताकि कोई भी फिलिस्तीनी उसके देश में दाखिल न हो पाए. जंग शुरू होने के बाद से 2 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनी गाजा छोड़ चुके हैं, लेकिन मुस्लिम देश मिस्र में उनके प्रति कोई हमदर्दी नहीं दिखाई देती है. इस जंग ने साफ़ कर दिया है कि मुस्लिम देशों के लिए फिलिस्तीनियों की आज़ादी से ज्यादा उनके अपने आर्थिक हित हैं. वो इसराइल के आगे कहीं नहीं टिकते हैं. उससे दुश्मनी मोल लेने में सब डरते हैं.