Abrar Ahmad Shayari: अबरार अहमद उर्दू के अच्छे शायर हैं. वह 6 फरवरी साल 1954 को पाकिस्तान के जारानवाला में पैदा हुए. वह पेशे से डॉक्टर थे. उनकी शायरी में आम आदमी का दर्द झलकता है. उनकी मशहूर किताबों में 'आखिरी दिन से पहले' और 'गफलत के बराबर' शामिल हैं. उन्होंने 'और क्या रह गया होने को' और 'तुझसे वाबस्तगी रहेगी अभी' जैसी मशहूर गजलें लिखी हैं. उन्होंने 29 अक्टूबर 2021 में वफात पाई.


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याद भी तेरी मिट गई दिल से 
और क्या रह गया है होने को 


तू कहीं बैठ और हुक्म चला 
हम जो हैं तेरा बोझ ढोने को 


तुझ से वाबस्तगी रहेगी अभी 
दिल को ये बेकली रहेगी अभी 


जिस काम में हम ने हाथ डाला 
वो काम मुहाल हो गया है 


मैं ठहरता गया रफ़्ता रफ़्ता 
और ये दिल अपनी रवानी में रहा 


ये यक़ीं ये गुमाँ ही मुमकिन है 
तुझ से मिलना यहाँ ही मुमकिन है 


यक़ीन है कि गुमाँ है मुझे नहीं मालूम 
ये आग है कि धुआँ है मुझे नहीं मालूम 


कोई सोचे न हमें कोई पुकारा न करे 
हम कहीं हैं कि नहीं हैं कोई चर्चा न करे 


क़िस्से से तिरे मेरी कहानी से ज़ियादा 
पानी में है क्या और भी पानी से ज़ियादा 


वो हुस्न है कुछ हुस्न के आज़ार से बढ़ कर 
वो रंग है कुछ अपनी निशानी से ज़ियादा 


कभी तो ऐसा है जैसे कहीं पे कुछ भी नहीं 
कभी ये लगता है जैसे यहाँ वहाँ कोई है 


हर एक आँख में होती है मुंतज़िर कोई आँख 
हर एक दिल में कहीं कुछ जगह निकलती है