Ada Jafri Shayari: अदा जाफरी उर्दू की बेहतरीन शायर हैं. उन्हें उर्दू शायरी की पहली औरत कहा जाता है. उन्होंने अपने बाद आने वाली शायरात के लिए रास्ता बनाया. उनका असली नाम अज़ीज़ जहां था, शादी के बाद उन्होंने अदा जाफरी लिखना शुरू किया. उन्होंने उर्दू फारसी और अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ बनाई. उन्हें किताबें पढ़ने का शौक था. नौ साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला शेर कहा. उन्होंने सबसे पहले अपनी मां को शेर सुनाया. उनकी नज्में 1940 में 'रूमान' पत्रिका में छपीं.


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गुल पर क्या कुछ बीत गई है, 
अलबेला झोंका क्या जाने


ख़ामुशी से हुई फ़ुग़ाँ से हुई 
इब्तिदा रंज की कहाँ से हुई 


कोई ताइर इधर नहीं आता 
कैसी तक़्सीर इस मकाँ से हुई 


हाथ काँटों से कर लिए ज़ख़्मी 
फूल बालों में इक सजाने को 


रीत भी अपनी रुत भी अपनी 
दिल रस्म-ए-दुनिया क्या जाने 


कुछ इतनी रौशनी में थे चेहरों के आइने 
दिल उस को ढूँढता था जिसे जानता न था 


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बस एक बार मनाया था जश्न-ए-महरूमी 
फिर उस के बाद कोई इब्तिला नहीं आई 


कटता कहाँ तवील था रातों का सिलसिला 
सूरज मिरी निगाह की सच्चाइयों में था 


काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या 
घुलता हुआ लहू में ये ख़ुर्शीद सा है क्या 


हज़ार कोस निगाहों से दिल की मंज़िल तक 
कोई क़रीब से देखे तो हम को पहचाने 


हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है 
कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना 


अगर सच इतना ज़ालिम है तो हम से झूट ही बोलो 
हमें आता है पतझड़ के दिनों गुल-बार हो जाना 


बड़े ताबाँ बड़े रौशन सितारे टूट जाते हैं 
सहर की राह तकना ता सहर आसाँ नहीं होता 


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