Aditya L1 ISRO's first solar mission: चांद पर उतरने के कुछ दिनों बाद, भारत सूर्य पर लक्ष्य साधेगा. शनिवार को अपने पहले सौर मुहिम के साथ, इसरो का पीएसएलवी आदित्य एल1 मिशन को सूर्य की 125 दिन की यात्रा पर भेजा जाएगा. इसरो ने कहा कि पीएसएलवी सी-57 पर आदित्य एल-1 के प्रक्षेपण के लिए 23.10 घंटे को उलटी गिनती शुक्रवार को शुरू हो चुकी है. सूर्य वेधशाला मिशन को शनिवार सुबह 11.50 बजे लॉन्च किया जाएगा.


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इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि सूर्य मिशन को अपने लक्ष्य तक पहुंचने में 125 दिन लगेंगे. 
ऐसे जटिल मिशन पर निकलने पर बेंगलुरु मुख्यालय वाली अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि सूर्य सबसे निकटतम ग्रह है, और इसलिए अन्य की तुलना में इसका ज्यादा विस्तार से अध्ययन किया जा सकता है. सूर्य का अध्ययन करके आकाशगंगा के साथ-साथ अन्य आकाशगंगाओं के तारों के बारे में भी बहुत कुछ जाना जा सकता है. 


इसरो वैज्ञानिकों ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के ज्यादा शक्तिशाली संस्करण 'एक्सएल’ का उपयोग किया है, जो शनिवार को सात पेलोड के साथ अंतरिक्ष यान को ले जाएगा. इसी तरह के पीएसएलवी-एक्सएल वेरिएंट का इस्तेमाल 2008 में चंद्रयान-1 मिशन और 2013 में मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) में किया जा चुका है. 
प्रारंभ में, आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा. जैसे ही अंतरिक्ष यान स्1 की ओर बढ़ेगा, यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकल जाएगा। बाहर निकलने के बाद, क्रूज़ चरण शुरू हो जाएगा और बाद में, अंतरिक्ष यान को एल-1 के चारों तरफ एक बड़ी प्रभामंडल कक्षा में स्थापित किया जाएगा. इच्छित एल-1 बिंदु तक पहुँचने में लगभग चार महीने लगेंगे.


उम्मीद है कि आदित्य-एल1 पेलोड कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई), प्री-फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियों और उनकी विशेषताओं, गतिशीलता और अंतरिक्ष मौसम की समस्याओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी मुहैया कराएगा. 


आदित्य-एल1 विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ का प्राथमिक पेलोड इच्छित कक्षा में पहुंचने पर विश्लेषण के लिए प्रतिदिन 1,440 तस्वीरें ग्राउंड स्टेशन पर भेजेगा. 
इस मिशन के उद्देश्यों में सौर वातावरण, सौर पवन वितरण और तापमान अनिसोट्रॉपी को समझना शामिल है. 


भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के प्रोफेसर और प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. आर रमेश के मुताबिक,, सौर भूकंपों का अध्ययन करने के लिए 24 घंटे के आधार पर सूर्य की निगरानी जरूरी है, जो पृथ्वी के भू-चुंबकीय क्षेत्रों को बदल सकती है.


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