लखनऊ: लखनऊ यूं तो नवाबी परंपराओं के लिए जाना जाता है, लेकिन अब वह मजहबी लड़ाई का केंद्र बनता जा रहा है. जहां एक तरफ कयास लगाए जा रहे हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार लखनऊ का नाम बदल कर लक्ष्मणपुरी रखना चाह रही है वहीं दशकों पहले टीले वाली मस्जिद का विवाद एक बार फिर सुर्खियों में है.


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हाल ही में दक्षिपंथी ग्रुप्स की मांग के बाद अदालत ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में वीडियोग्राफी और सर्वे कराने के आदेश दिए थे. इस कामयाबी के बाद दक्षिणपंथी ग्रुपों ने लखनऊ की टीले वाली मस्जिद में भी इसी तरह की गतिविधि की मांग की है. इन ग्रुपों का कहना है कि टीले वाली मस्जिद का नाम 'लक्ष्मण टीला' है. 


इस ताल्लुक से साल 2013 में वकील हरीशंकर जैन ने एक केस फाइल किया था. वकील ने मस्जिद के सर्वे की मांग की थी. हरीशंकर जैन और उनके बेटे विष्णु शंकर जैन इस तरह के केसों के लिए मशहूर हैं. उन्होंने ही ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा शाही ईदगाह का मामला उठाया था.


टीले वाली मस्जिद में मौलाना फजलुर्रहमान के पूर्वज शाह पीर मुहम्मद की एक मजार है. 


टीले वाली मस्जिद का मामला जहां कई दशकों से सुर्खियों में हैं वहीं लखनऊ के इतिहास के बारे में जानकारी रखने वाले लाल जी टंडन ने अपनी किताब 'अनकहा लखनऊ' में बताया है कि लखनऊ के मुसलमान राम के छोटे भाई लक्ष्मण से संबंधित हैं. 


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टंडन ने लिखा कि "राजधानी की सबसे बड़ी सुन्नी मस्जिद औरंगजेब के जमाने में लक्ष्मण टीले पर बनाई गई, यह स्थान राम के भाई के नाम पर है."


इस मामले में दिलचस्प मोड़ तब आया जब जुलाई 2018 में भाजपा की अगुवाई वाली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने टीले वाली मस्जिद के बाहर क्रॉसिंग पर लक्ष्मण की मूर्ति लगाने का ऐलान किया. हालांकि यह मूर्ति अभी तक नहीं लगाई गई. 


पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक ट्वीट किया था "शेषावतार भगवान की पावन नगरी लखनऊ में आपका स्वागत और अभिनंदन." इस ट्वीट के बाद ये अटकलें लगाई जा रही थीं कि राजधानी का नाम बदला जाएगा.


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