Ahmad Faraz Shayari: अहमद फराज उर्दू के बेहतरीन शायर थे. फराज साहब का असली नाम सैयद अहमद शाह था. वह 14 जनवरी साल 1931 को पाकिस्तान के नौशेरां शहर में पैदा हुए. उन्होंने पाकिस्तान में ही उर्दू और फारसी की तालीम हासिल की. फराज साहब बचपन में पायलट बनना चाहते थे, लेकिन उनकी मां इसके लिए नहीं मानीं. फराज ने पाकिस्तान में कुछ दिन अध्यापन किया और उन्होंने पाकिस्तान रेडियो में भी नौकरी की.


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ज़िंदगी से यही गिला है मुझे 
तू बहुत देर से मिला है मुझे 


तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल 
हार जाने का हौसला है मुझे 


इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ 
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ 


चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का 
सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही 


आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा 
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा 


उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ 
अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ


हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा'द ये मा'लूम 
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी 


रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ 
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ 


अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर 
चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए 


किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल 
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा 


दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है 
जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे  


अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें 
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें