Ahmad Nadeem Qasmi Shayari: अहमद नदीम कासमी उर्दू के बेहतरीन शायर थे. उनकी पैदाइश 20 नवंबर 1916 को पंजाब में हुई. उन्होंने 'फनून' नाम का एक अदबी रिसाला निकाला. उन्होंने सआदत हसन मंटो की कुछ फिल्मों के लिए गाने लिखे, लेकिन फिल्में रिलीज नहीं हुईं. उन्होंने फिल्म 'आगोश', 'दो रास्ते' और 'लोरी' के संवाद लिखे. उन्हें सत्ता विरोधी गतिविधि करने के लिए जेल भी जाना पड़ा. जुलाई साल 2006 में उनका इंतेकाल हो गया.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

मर जाता हूँ जब ये सोचता हूँ 
मैं तेरे बग़ैर जी रहा हूँ 


उस वक़्त का हिसाब क्या दूँ 
जो तेरे बग़ैर कट गया है 


मैं कश्ती में अकेला तो नहीं हूँ 
मिरे हमराह दरिया जा रहा है 


आज की रात भी तन्हा ही कटी 
आज के दिन भी अंधेरा होगा 


इक सफ़ीना है तिरी याद अगर 
इक समुंदर है मिरी तन्हाई 


मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं 
मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है 


जिस भी फ़नकार का शहकार हो तुम 
उस ने सदियों तुम्हें सोचा होगा 


ख़ुदा करे कि तिरी उम्र में गिने जाएँ
वो दिन जो हम ने तिरे हिज्र में गुज़ारे थे


सुब्ह होते ही निकल आते हैं बाज़ार में लोग
गठरियाँ सर पे उठाए हुए ईमानों की


कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा
मैं तो दरिया हूँ समुंदर में उतर जाऊँगा


आख़िर दुआ करें भी तो किस मुद्दआ के साथ
कैसे ज़मीं की बात कहें आसमाँ से हम


मैं ने समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले
तू ने जा कर तो जुदाई मिरी क़िस्मत कर दी