Ali Sardar Jafri Hindi Shayari: अली सरदार जाफरी उर्दू के मशहूर शायरों में से एक हैं. उनकी पैदाईश 29 नवंबर 1913 को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में हुई. जाफरी ने 15 साल की उम्र से ही मरसिए लिखने शुरू किए. उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर साल 1939 में 'नया अदब' मैग्जीन और 'पर्चम' अखबार निकाला. उनकी लिकी रचनाओं के कई जबानों में ट्रांसलेशन हुए. उन्होंने 1 अगस्त साल 2000 में मुंबई महाराष्ट्र में आखिरी सांस ली.


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इक सुब्ह है जो हुई नहीं है 
इक रात है जो कटी नहीं है 


मैं जहाँ तुम को बुलाता हूँ वहाँ तक आओ 
मेरी नज़रों से गुज़र कर दिल-ओ-जाँ तक आओ 


क़ैद हो कर और भी ज़िंदाँ में उड़ता है ख़याल 
रक़्स ज़ंजीरों में भी करते हैं आज़ादाना हम 


आँधियाँ चलती रहें अफ़्लाक थर्राते रहे 
अपना परचम हम भी तूफ़ानों में लहराते रहे 


हर रंग के आ चुके हैं फ़िरऔन 
लेकिन ये जबीं झुकी नहीं है 


अब आ गया है जहाँ में तो मुस्कुराता जा 
चमन के फूल दिलों के कँवल खिलाता जा 


तू वो बहार जो अपने चमन में आवारा 
मैं वो चमन जो बहाराँ के इंतिज़ार में है 


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शिकायतें भी बहुत हैं हिकायतें भी बहुत 
मज़ा तो जब है कि यारों के रूबरू कहिए 


पुराने साल की ठिठुरी हुई परछाइयाँ सिमटीं 
नए दिन का नया सूरज उफ़ुक़ पर उठता आता है 


इंक़लाब आएगा रफ़्तार से मायूस न हो 
बहुत आहिस्ता नहीं है जो बहुत तेज़ नहीं 


काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा 
रास्ते बंद हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवा 


ये तेरा गुलिस्ताँ तेरा चमन कब मेरी नवा के क़ाबिल है 
नग़्मा मिरा अपने दामन में आप अपना गुलिस्ताँ लाता है 


हवा है सख़्त अब अश्कों के परचम उड़ नहीं सकते 
लहू के सुर्ख़ परचम ले के मैदानों में आ जाओ 


वो मिरी दोस्त वो हमदर्द वो ग़म-ख़्वार आँखें 
एक मासूम मोहब्बत की गुनहगार आँखें 


वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब 
इंसाँ इंसाँ बहुत रटा है इंसाँ इंसाँ बनेगा कब 


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