प्रयागराजः उत्तर प्रदेश के मेरठ में 35 साल पहले हुए 72 मुसलमानों के कत्ल पर अदालत का जमीर एक बार फिर जाग गया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट मेरठ के 1987 के मलियाना नरसंहार में 39 मुल्जिमों को उनके गुनाहों से बरी करने के फैसले की समीक्षा करेगा. हाईकोर्ट ने निचली अदालत से कत्ल के 39 मुल्जिमों को बरी किए जाने से जुड़े रिकॉर्ड तलब किए हैं. इस हत्याकांड में पीएसी कर्मियों समेत उग्र भीड़ ने 72 मुसलमानों की हत्या कर दी थी. 

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सबूतों के अभाव में छोड़ दिए गए मुजरिम 
इस मामले में मृतकों के एक परिजन रईस अहमद द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए, हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस मनीष कुमार निगम की खंडपीठ ने कहा, निचली अदालत के रिकॉर्ड को समन करें. इस मामले की अगली सुनवाई 14 अगस्त को होगी. रईस ने मेरठ जिले की सत्र अदालत के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें सबूतों के अभाव में इस साल 31 मार्च को इस हत्याकांड में सभी 39 मुल्जिमों को बरी कर दिया गया था. स्थानीय याकूब अली नाम के एक पीड़ित ने उस साल 24 मई को 93 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. 93 अभियुक्तों में से 23 की पिछले 36 वर्षों के परीक्षण के दौरान मृत्यु हो गई और 31 का पता नहीं लगाया जा सका.

एक-एक को गोली माकर नहर में फेक दी गई थी लाशें
गौरतलब है कि 23 मई, 1987 को पड़ोसी मेरठ के हाशिमपुरा में एक दिन पहले हुई झड़पों के बाद मलियाना में दंगे भड़क गए थे. हाशिमपुरा दंगे में 42 लोगों की जान चली गई थी और इसके बाद हुई मलियाना हिंसा में 72 लोगों की मौत हुई थी.


मलियाना नरसंहार के एक दिन पहले, 42 मुसलमानों को कथित तौर पर मेरठ के हाशिमपुरा इलाके में पीएसी कर्मियों द्वारा घेर लिया गया था और उन्हें ट्रकों में भरने के बाद गाजियाबाद के मुरादनगर में गंगा नहर के पास एक-एक को ट्रक से उतार कर गोली मारने के बाद नहर में फेक दिया गया था. दिल्ली की एक अदालत ने 2018 में पीएसी के 16 पूर्व कर्मियों को इस मामले में कसूरवार ठहराया था. 


हालाँकि, 36 साल और 900 सुनवाई के बाद, मेरठ के अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश लखविंदर सूद ने 31 मार्च को मलियाना नरसंहार मामले में सभी 39 अभियुक्तों को बरी कर दिया.


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