आज हमने एक दुनिया बेची
और एक दीन ख़रीद लिया
हमने कुफ़्र की बात की


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

सपनों का एक थान बुना था
एक गज़ कपड़ा फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी ली


आज हमने आसमान के घड़े से
बादल का एक ढकना उतारा
और एक घूँट चाँदनी पी ली


यह जो एक घड़ी हमने
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगे


मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम की आज 103वीं जयंती है. उनकी पैदाइश  31 अगस्त 1919 को हुई थी. बचपन से ही उन्हें ग़म और परेशानियों से सामना करना पड़ा.छोटी उम्र में मां का निधन, बग़ैर पसंद की शादी, साहिर लुधियानवी से अधूरी मोहब्बत और इमरोज़ के साथ जिंदगी. इसी कशमकश में उनकी ज़िंदगी गुज़र गई. 'मोहब्बत और वफा ऐसी चीज़ें नहीं हैं, जो किसी बेगाना बदन के छूते ही ख़त्म हो जाएं.. हो सकता है पराए बदन से गुज़र कर वह और मज़बूत हो जाए जिस तरह इन्सान मुश्किलों से गुज़र कर और मज़बूत हो जाता है'


'एरियल'नॉवल की किरदार ऐनी के मुंह से यह लफ़्ज़ जब निकलते हैं तो कोई भी रीडर मोहब्बत को सच्चे मायनों में समझने लगता है. मोहब्बत सिर्फ साथ होने और प्यार हासिल करने का नाम नहीं है..ऐसे ही कुछ अलग क़िस्म की मोहब्बत साहिर, अमृता और इमरोज़ के बीच थी.अमृता इमरोज़ और साहिर के तो कई किस्से हैं, लेकिन जब अमृता के बेटे नवरोज ने उनसे पूछा था- कि मां क्या मैं साहिर अंकल का बेटा हूं.चंदर वर्मा और डॉ सलमान आबिद की किताब 'मैं साहिर हूं' में साहिर और अमृता को लेकर कई बातें लिखीं गई हैं. साहिर बताते हैं कि उनकी और अमृता की मुलाकातों का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा था. साहिर ने बहुत सी नज़्में अमृता के लिए लिखीं.


'मेरे ख़्वाबों के झरोकों को सजाने वाली
तेरे ख़्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है कि नहीं
पूछकर अपनी निगाहों से बता दे मुझको
मेरी रातों के मुक़द्दर में सहर है कि नहीं'


साहिर की शक्ल जैसा बच्चा चाहती थीं अमृता


साहिर अमृता से जुड़ा एक क़िस्सा बताते हैं.उन्होने बताया कि अमृता हमेशा से जादू और ज्योतिष में यक़ीन रखती थी. उन्हें लगता था वो जिस किसी के भी बारे में ज़्यादा सोचेंगी, होने वाले बच्चे की शक्ल भी उस के जैसी हो जाएगी. साहिर ने बताया कि काफी वक्त के बाद अमृता ने मुझे ये बात बताई.जिसे सुनकर मुझे बहुत हैरानी हुए.


अमृता के बेटे ने पूछा जब ये सवाल
जब अमृता का तलाक हो चुका था और उनके बेटे नवरोज 13 साल के थे तो उन्होंने अपनी मां अमृता से एक सवाल पूछा था कि 'मैं साहिर हूं' किताब में साहिर के अल्फाज़ में लिखा है 'नवरोज़ एक रोज़ निहायत मासूमियत से अमृता से पूछने लगा- ममा...एक बात पूछूं..सच-सच बताओगी...अमृता ने हामी भर दी. नवरोज़ ने पूछा- क्या मैं साहिर अंकल का बेटा हूं? और अगर हूं तो बता दो मुझे साहिर अंकल पसंद हैं'
अमृता ने  नवरोज़ को जवाब देते हुए कहा,बेटे साहिर अच्छे तो मुझे भी लगते हैं लेकिन अगर ये सच होता तो मैं तुम्हें बता चुकी होती. साहिर लिखते हैं 'ये सच न अमृता की ज़िंदगी का हो पाया न मेरे ज़िंदगी का