Asrarul Haq Majaz Poetry: असरारुल हक मजाज उर्दू के बेहतरीन शायर थे. वह रोमानी शायर के तौर पर मशहूर थे. लखनऊ से जुड़े होने से वे 'मजाज़ लखनवी' के नाम से भी मशहूर हुए. शुरूआती दौर में कम पसंद किए जाने की वजह से उन्होंने बहुत ही कम लिखा, इसके बावजूद वह बहुत मशहूर हुए. 


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क्यूँ जवानी की मुझे याद आई 
मैं ने इक ख़्वाब सा देखा क्या था 


कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी 
कुछ मुझे भी ख़राब होना था 


फिर मिरी आँख हो गई नमनाक 
फिर किसी ने मिज़ाज पूछा है 


डुबो दी थी जहाँ तूफ़ाँ ने कश्ती 
वहाँ सब थे ख़ुदा क्या ना-ख़ुदा क्या 


हिन्दू चला गया न मुसलमाँ चला गया 
इंसाँ की जुस्तुजू में इक इंसाँ चला गया 


मुझ को ये आरज़ू वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद 
उन को ये इंतिज़ार तक़ाज़ा करे कोई 


कमाल-ए-इश्क़ है दीवाना हो गया हूँ मैं 
ये किस के हाथ से दामन छुड़ा रहा हूँ मैं 


तुम्हीं तो हो जिसे कहती है नाख़ुदा दुनिया 
बचा सको तो बचा लो कि डूबता हूँ मैं 


या तो किसी को जुरअत-ए-दीदार ही न हो 
या फिर मिरी निगाह से देखा करे कोई 


दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को 
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूँ मैं 


कब किया था इस दिल पर हुस्न ने करम इतना 
मेहरबाँ और इस दर्जा कब था आसमाँ अपना 


आवारा ओ मजनूँ ही पे मौक़ूफ़ नहीं कुछ 
मिलने हैं अभी मुझ को ख़िताब और ज़ियादा