Assam: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि उन्होंने असम में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए एक बिल का मसौदा तैयार किया था, हर एक राज्य यूसीसी को लागू नहीं करेगा क्योंकि इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा.


क्या बोले हिमंत बिस्वा सरमा


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

उत्तराखंड में जनवरी 2025 से यूसीसी लागू करने के बारे में एएनआई से बात करते हुए बिस्वा ने कहा, "उत्तराखंड हमारे देश के लिए एक आदर्श है. मैं यूसीसी लागू करने के लिए धामी [सीएम पुष्कर सिंह धामी] को शुक्रिया अदा करने चाहता हूं, जिसके जरिए से उन्होंने देश को आगे का रास्ता दिखाया है. हमें भी आगे बढ़ने के लिए यूसीसी को चुनना होगा."


सवाल पूछे जाने कि असम में यह कब लागू होगा. सरमा ने कहा कि हमारा बिल रेडी है. लेकिन, फैसला लिया गया है कि यह पूरे देश में लागू किया जाएगा. इसलिए हम अपने राज्य में अलग तौर पर इसे लागू नहीं करेंगे.


यूसीसी लागू करने वाला पहला राज्य


सीएम बिस्वा ने आगे बताया कि जब उन्होंने एक बिल बनाया था, तो उन्होंने कहा कि यह फैसला लिया गया था कि यूसीसी पूरे देश में लागू किया जाएगा, इसलिए हमें उन्हें राज्य-वार लागू करने की जरूरत नहीं है. उत्तराखंड यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा. इस महीने की शुरुआत में सीएम धामी ने कहा था कि राज्य में जनवरी 2025 से यूसीसी लागू हो जाएगी और इसके लिए में सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं.


सत्ता में लौटते ही बड़ा फैसला


मार्च 2022 में राज्य में धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के सत्ता में लौटने के बाद, कैबिनेट ने अपनी पहली बैठक में राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए एक खास समीति गठित करने का फैसला लिया गया था. रिटायर न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया.


समिति की रिपोर्ट के आधार पर यूसीसी बिल 2024 को राज्य विधानसभा के जरिए 7 फरवरी, 2024 को पारित किया गया. बिल पर राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद 12 मार्च, 2024 को इसका नोटिफिकेशन जारी किया गया. इसी क्रम में यूसीसी, उत्तराखंड 2024 अधिनियम की नियमावली भी तैयार कर ली गई है.


क्या है बिल का मकसद?


इस बिल में सात शेड्यूल और 392 धाराएं हैं और यह तलाक, विवाह, लिव-इन रिलेशनशिप और उत्तराधिकार सहित चार अहम की एरियाज पर फोक है. इसमें हलाला, बहुविवाह, बहुपतित्व, इद्दत जैसी प्रथाओं को खत्म करने और महिलाओं और पुरुषों को उत्तराधिकार का अधिकार देने के लिए अन्य प्रावधान भी हैं.