Bashir Badr Hindi Shayari: बशीर बद्र उर्दू के बेहतरीन शायरों में शुमार होते हैं. बशीर बद्र की पैदाईश 15 फरवरी 1935 को अयोध्या में हुई थी और उनका बचपन कानपुर में गुज़रा था. जब वो 15 साल के थे तो उनके वालिद का इंतेक़ाल हो गया था और अपने वालिद की जगह पर उनको नौकरी मिल गई थी. उन्होंने अपनी पढ़ाई लिखाई को भी जारी रखा और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से एमए किया जिसके बाद उन्हें मेरठ के एक कालेज में नौकरी मिल गई. 


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कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी 
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता 


ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने 
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला 


इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी 
लोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे 


उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में 
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते 


उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो 
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए 


मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी 
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी 


मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला 
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला 


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बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना 
जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता 


दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे 
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों 


पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला 
मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू क नहीं देरखा 


लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में 
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में 


भूल शायद बहुत बड़ी कर ली 
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली 


ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं 
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है 


तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा
यूँ करो जाने से पहले मुझे पागल कर दो 


कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से 
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो 


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