Bihar News: आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में होगा. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है. वैसे-वैसे राजनीतिक पार्टियों का सियासी पारा चढ़ता जा रहा है. लोकसभा चुनाव की तैयारी को लेकर विपक्षी पार्टियों ने भाजपा को केंद्र से उखाड़ फेकने की रणनीति बना रही है. इसी क्रम में बिहार की राजधानी पटना में 23 जून को18 विपक्षी दलों की महाबैठक हुई थी. इस महाबैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सभी विपक्षी पार्टियों ने सर्वसम्मति से संयोजक बनाया. 


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इस बैठक के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कद राष्ट्रीय स्तर गया है. इसके अलावा राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति में जोरदार वापसी कर रहे है. इस बैठक के बाद कुछ राजनीतिक पंडितो का मानना है कि अगर विपक्ष ऐसी ही एकजुट रहा तो आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की स्थिति खराब हो जाएगी. क्योंकि सत्ता विरोधी लहर अपने चरम पर है. केंद्र की भाजपा सरकार 2019 में किए गए वादों में रोजगार, शिक्षा और महंगाई को रोकने में असफल रही है. इस कारण भाजपा सरकार की काफी आलोचना हो रही है. ऐसे में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की जोड़ी उन्हें भाजपा के लिए एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी बना देगी. 


नीतीश कुमार ने ही विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को पटना में आने का निमंत्रण देने में अहम भूमिका थी.  इससे यह यह साबित होता हो गया कि विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की स्वीकार्यता सबसे ज्यादा है. उनके खिलाफ कोई कानूनी या भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है और उनकी छवि साफ-सुथरी है. उन्हें सभी विपक्षी दलों ने मिलकर विपक्षी  पार्टियों का संयोजक भी घोषित किया गया है. जिसका अर्थ है कि वह लोकसभा चुनाव के लिए दो या दो अधिक पार्टियों के बातचीत के दौरन मध्यस्थ की भूमिका निभाएंगे. 


पटना की बैठक की शानदार सफलता के बाद JDU विधायक शालिनी मिश्रा ने सोशल मीडिया पर नीतीश कुमार की तस्वीर के साथ 'देश मांगे नीतीश' नारा का एक पोस्ट अपलोड किया. वही बिहार सरकार में भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने कहा कि हर जन आंदोलन के पीछे एक मजबूत व्यक्ति का हाथ होता है. बिहार अतीत में कई जन आंदोलनों का गवाह रहा है. जिसने देश में सत्तारूढ़ दलों को हिलाकर रख दिया था. 


JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि J.P Nadda और अमित शाह के पास हमसे कहने के लिए कुछ नहीं बचा है. इसलिए वे कांग्रेस और शिवसेना के एक ही मंच पर आने की बात करते हैं जहां हम है. यह एक गैर-जिम्मेदाराना कदम है. आगे उन्होंने कहा कि 1975 में आपातकाल के दौरान जब हम लड़ रहे थे. तो यह उस समय की स्थिति के खिलाफ लड़ाई थी. ना कि किसी सरकार के खिलाफ. वर्तमान समय में स्थिति आपातकाल से भी बदतर है.


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