नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि गुजिश्ता साल मार्च में कोविड-19 नियमों का कथित तौर पर उल्लंघन कर निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात का सम्मेलन बुलाने के संबंध में दर्ज मामला गंभीर है और इसका ‘सीमा पार तक असर’ है. वहीं अदालत ने टिप्पणी की कि परिसर को सदा के लिए बंद नहीं रखा जा सकता. दिल्ली वक्फ बोर्ड द्वारा मरकज को खोलने के लिए दायर अर्जी पर न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने सुनवाई की. यह परिसर पिछले साल 31 मार्च से ही बंद है. अदालत ने केंद्र से सवाल किया कि उसकी मंशा कब तक निजामुद्दीन मरकज को बंद रखने की है और कहा कि यह ‘हमेशा’ के लिए नहीं हो सकता.
वहीं, दिल्ली पुलिस उपायुक्त (अपराध) द्वारा दाखिल हलफनामे में केंद्र ने दोहराया कि ‘ कोविड-19 नियमों के उल्लंघन के संबंध में दर्ज मामले की जांच के तहत मरकज की संपत्ति को संरक्षित रखना आवश्यक है क्योंकि इसके सीमा पार तक असर हैं और अन्य देशों के साथ राजनयिक संबंध का मामला जुड़ा है.


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मरकज के आवासीय हिस्से को सुपुर्द करने का मामला आखिरी दौर में 
केंद्र की तरफ से पेश वकील ने तर्क दिया कि मरकज को खोलने की कानूनी कार्रवाई की शुरुआत संपत्ति के पट्टेदार या परिसर में रहने वाले लोगों द्वारा की जा सकती है और पहले ही मरकज के आवासीय हिस्से को सुपुर्द करने की याचिका पर सुनवाई उच्च न्यायालय के ही अन्य न्यायाधीश के समक्ष अंतिम दौर में है. केंद्र की तरफ से पेश वकील रजत नायर ने कहा कि केवल कानूनी दृष्टि पर विचार कर याचिका का निपटारा किया जा सकता है. वक्फ बोर्ड को पट्टेदार को पीछे कर आगे आने का अधिकार नहीं है.

आप कब तक इस संपत्ति पर ताला लगाए रखेंगेः कोर्ट 
हालांकि, न्यायाधीश ने कहा कि कुछ लोगों के कब्जे में संपत्ति थी. महामारी की वजह से प्राथमिकी दर्ज की गई और आपने संपत्ति पर कब्जा लिया. इसे वापस किया जाना चाहिए. ऐसा नहीं हो सकता कि संपत्ति को हमेशा रखा (अदालत के आदेश के अधीन) जाए. आपकी इस मामले पर क्या राय है? आप हमें बताएं आप किसका इंतजार कर रहे हैं. आप कबतक इस संपत्ति पर ताला लगाए रखेंगे. अदालत ने मरकज के प्रबंध समिति के एक सदस्य द्वारा मामले में पक्षकार बनाए जाने की अर्जी पर नोटिस जारी किया और केंद्र के हलफनामा पर जवाब दाखिल करने की वक्फ बोर्ड को अनुमति देने के साथ ही मामले की अगली सुनवाई 16 नवंबर को तय कर दी.

संपत्ति को उन्हें हमें वापस सौंपना चाहिए 
वक्फ बोर्ड की तरफ से पेश अधिवक्ता रमेश गुप्ता ने तर्क दिया कि अर्जी डेढ़ साल से ज्यादा वक्त से लंबित है और उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी याचिका मरकज की पूरी संपत्ति वापस करने की है जिसमें मस्जिद, मदरसा और आवासीय हिस्सा शामिल है. उन्होंने कहा कि अब संपत्ति को उन्हें हमें वापस सौंपना चाहिए. केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं है. हस्तक्षेप करने वाले सदस्य का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने कहा कि वह भी इस मामले में वक्फ के साथ है और जब भी मरकज को खोलने की अनुमति दी जाएगी तब संबंधित नियमों का पालन किया जाएगा.


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