Same Sex Marriage: पत्नी-पति नहीं, जीवनसाथी हो नाम; LGBTQ+ शादी के पक्ष में पढ़े याचिकाकर्ता की दलील
Discussion on Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है. सुनवाई के दौरान याचिका दायर करने वालों की तरफ पेश हुए वकील ने कहा कि सबसे पहले जेंडर संबोधन को खत्म किया जाना चाहिए.
Discussion on Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है. सुनवाई के दौरान याचिका दायर करने वालों की तरफ पेश हुए वकील ने कहा कि सबसे पहले जेंडर संबोधन को खत्म किया जाना चाहिए.
समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने संबंधी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान बुधवार को याचिकाकर्ताओं ने सुझाव दिया कि विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए), 1954 में जहां कहीं भी पति और पत्नी शब्दों का प्रयोग किया गया है, वहां जीवनसाथी शब्द का प्रयोग करके इसे लिंग तटस्थ बनाया जाए. इसी तरह पुरुष और महिला को व्यक्ति द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए.
कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष जोर देकर कहा कि विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) में इस व्याख्या से समस्या का एक बड़ा हिस्सा हल हो जाएगा. रोहतगी ने एलजीबीटीक्यूएआईप्लस समुदाय को इसके दायरे में शामिल करने के लिए इसकी व्याख्या करने और इसके प्रावधानों के तहत उनकी शादी को संपन्न करने का अधिकार प्रदान करने के लिए एसएमए के प्रावधानों पर विस्तार से चर्चा की.
इसके बाद, उन्होंने एसएमए की धारा 2, 4, 22, 27, 36 और 37 सहित कई प्रावधानों को पढ़ा, ताकि इसके तहत समलैंगिक जोड़ों के विवाह के पंजीकरण और/या पंजीकरण की व्यावहारिकता का प्रस्ताव किया जा सके.
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उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार सभी व्यक्तियों, विषमलैंगिक या समलैंगिकों के लिए हैं. ऐसा कोई कारण नहीं है कि उन्हें विवाह के अधिकार से वंचित किया जाए.
उन्होंने कहा कि राज्यों को शालीनता से इसे स्वीकार कर लेना चाहिए. (ऐसा करने से) हम छोटे नहीं हो जाएंगे और जीवन के अधिकार का पूरा आनंद मिलेगा. मुझे शादीशुदा होने के उस तमगे से ज्यादा की जरूरत है. मैं एक वैध विवाह के सकारात्मक और स्वीकारात्मक परिणाम भी चाहता हूं. हठधर्मिता को हटा दें, कलंक को दूर करें.
रोहतगी ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल एक घोषणा चाहते हैं कि हमें शादी करने का अधिकार है, उस अधिकार को राज्य द्वारा मान्यता दी जाएगी और विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत किया जाएगा. एक बार ऐसा हो जाने पर, समाज हमें स्वीकार कर लेगा. वह होगी पूर्ण और अंतिम स्वीकृति.
उन्होंने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाले नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश का भी हवाला दिया. वहां की शीर्ष अदालत ने नेपाल के कानून और न्याय मंत्रालय को समान विवाह कानून तैयार करने या मौजूदा कानूनों में संशोधन कर समान विवाह के सिद्धांतों को समायोजित करने के लिए कहा था.
उनके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एम. सिंघवी ने मामले में अपनी दलीलें पेश कीं. रोहतगी की सहायता वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ किरपाल, डॉ. मेनका गुरुस्वामी, अरुंधति काटजू और करंजावाला एंड कंपनी के अधिवक्ताओं की एक टीम ने की.
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