Islamic Knowledge: एक बेहतर समाज तभी बन पाता है, जब इसमें रहने वाले तरह-तरह के लोग हों. इससे भी अच्छी बात यह होती है कि सबी लोग भाईचारे के साथ रहें. एक दूसरे की कमी पर कभी कोई बयानबाजी न करें. एक दूसरे की कमियां न निकालें. हर शख्स एक दूसरे को उसी तरह से अपनाए जैसे वह है. इंसानों में आपस में तभी मेल-मिलाप हो पाता है कि लोग एक दूसरे की कमियों को न देखकर उनकी खूबियों को देखकर उनके साथ बेहतर ताल्लुक बनाएं.


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सबसे बड़ी बुराई है बुराई निकालना
इस्लाम कहता है कि सबसे बुरी नैतिक बुराइयों में से एक बुराई यह है कि दूसरों की बुराइयों को निकाला जाए. दूसरे की बुराई को देखना घमंड, अहंकार, पद की तलाश और ईर्ष्या का प्रतीक है. दूसरों के ऐब तलाशने वाले वो लोग हैं, जो अपनी बुराईयों और कोताहियों से लापरवाह रहते हैं. इस्लाम कहा गया है कि जो शख्स दूसरों की बुराई को सबके सामने लाएगा और लोगों को रुसवा करेगा, अल्लाह ताला उसे दर्दनाक अजाब देगा.


बुराई को अकेले में बताओ
इस्लाम कहता है कि जब भी किसी शख्स की बुराई को देखो उसे चुपचाप अकेले में समझाओ. उसे अकेले में सलाह दो, ताकि वह अपनी गलतियों पर पश्चाताप करे और उन्हें दोबारा करने से बचे. इस सलाहकारी उपाय में जिस बात का सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाना चाहिए वह है लोगों की इज्जत.


मक्खी जैसा है बुराई निकालने वाला शख्स
किसी दूसरे शख्स में बुराई निकालने वाले शख्स की मिसाल एक मक्खी की सी है, जो गंदगी पर बैठती है. इसी तरह से दूसरों में ऐब निकालने वाले शख्स सिर्फ नकारात्म पहलुओं पर उंगली उठाते हैं. वह लोग लोगों की अच्छी बातों पर ध्यान ही नहीं देते है.


बुराई पर हदीस
इस बारे में हदीस में जिक्र है कि "हजरत आइशा (रजि0) कहती हैं कि मैंने नबी (स0.) से कहा: सफीया का यह ऐब कि वह ऐसी और ऐसी है, आपके लिए बहुत है (मतलब यह कि वह ठिगनी है और यह बड़ा ऐब है.) आप (स0) ने फरमाया: आइशा! तुमने ऐसी बात मुंह से निकाली है कि अगर उसे समुंदर में घोल दिया जाए तो पूरे समुद्र को गंदा कर दे." (हदीस: मिशकात)


बुराई पर कुरान में जिक्र
कुरान में जिक्र है कि "ईमानवालों, खबरदार रहो कि कोई कौम किसी दूसरी कौम का मजाक न उड़ाए और देखो कि तुम एक दूसरे में बुराइयां न निकालो और एक दूसरे को बुरे नामों से मत बुलाओ." (कुरान: सूरह- हिजरात, आयत- 11)