Faiz Ahmad Faiz Poetry: फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (Faiz Ahmad Faiz) भारत के जाने माने उर्दू और पंजाबी शायर थे. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (Faiz Ahmad Faiz) पर आरोप लगते रहे हैं कि वह कम्यूनिस्ट थे और इस्लाम से इतर रहते थे. जेल के दौरान लिखी गई उनकी कविता 'ज़िन्दान-नामा' को बहुत पसंद किया गया था. फ़ैज़ ने आधुनिक उर्दू शायरी को एक नई ऊँचाई दी. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (Faiz Ahmad Faiz) को 1963 में सोवियत रशिया से लेनिन शांति पुरस्कार दिया गया. 1984 में नोबेल पुरस्कार के लिये भी उनका नामांकन किया गया था.


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और क्या देखने को बाक़ी है 
आप से दिल लगा के देख लिया 


तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं 
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं 


न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है 
अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है 


नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही 
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही 


वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था 
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है 


आप की याद आती रही रात भर
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर 


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कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी 
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी 


आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान 
भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे 


न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ 
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं 


ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में 
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं 


है वही बात यूँ भी और यूँ भी
तुम सितम या करम की बात करो


गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं


कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे
कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक याद न आओगे


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