Farmers Protest 2.0: एक बार फिप पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान सड़कों पर उतर आए हैं और किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच आखिरी दौर की बातचीत सोमवार रात बेनतीजा रहने के बाद मंगलवार को 200 से अधिक किसान यूनियनें दिल्ली की ओर बढ़ रही हैं. केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि किसानों द्वारा उठाए गए अधिकांश मुद्दों पर सहमति बन गई है और सरकार ने बाकी मुद्दों के समाधान के लिए एक समिति बनाने का प्रस्ताव रखा है. किसान नेताओं ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की कोई स्पष्टता नहीं है.


कब शुरू होगा किसानों का मार्च?


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किसान सुबह 10 बजे अपना दिल्ली चलो मार्च शुरू करेंगे, लेकिन हरियाणा सरकार ने किसानों का रोकने का इंतेजाम किया हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के चारों ओर एक बड़ी बाड़ लगा दी गई है ताकि प्रदर्शनकारी पंजाब से हरियाणा में एंट्री  न ले सकें. किसानों के 2020-21 के विरोध प्रदर्शन को फिर से शुरू न होने देने की कोशिश में दिल्ली की सीमाओं को मजबूत कर दिया गया है.


कैसे अलग है किसानों का यह प्रदर्शन


2020 में, किसानों ने तीन कानूनों का विरोध कर रहे छे, जिन्हें दिल्ली की सीमाओं पर उनके एक साल के विरोध के बाद 2021 में निरस्त कर दिया गया. वहीं दिल्ली चलो का ऐलान 2023 में किया गया था जिसमें डिमांड है कि सभी फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी हो, स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले को लागू किया जााए, किसानों के लिए पूर्ण कर्ज माफी हो और किसानों और मजदूरों के लिए पेंशन तय की जाए.


किसान आंदोलन 2.0 को कौन लीड कर रहा है


किसान विरोध 2.0 का नेतृत्व अलग-अलग यूनियनों के जरिए किया जा रहा है. पिछले कुछ सालों में किसान यूनियनों का लैंडस्केप बदला है. हालांकि इस बार के प्रोटेस्ट का राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चूर्नि हिस्सा नहीं हैं.  एसकेएम (गैर राजनीतिक) के नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल और सरवन सिंह पंधेर के महासचिव सरवन सिंह पंधेर अब सबसे आगे हैं.


किसानों के लिए भारी सिक्योंरिटी?


2020 में, किसान देश की राजधानी में आने में कामयाब हो पाए थे. हालांकि इस बार प्रशासन ने काफी सख्त कदम उठाए हैं. कंटीले तार, सीमेंट बैरिकेड, सड़कों पर कीलें - दिल्ली की सभी सड़कें अवरुद्ध कर दी गई हैं. दिल्ली में धारा 144 लागू कर दी गई है. हरियाणा सरकार ने पंजाब से लगी अपनी सीमाएं सील कर दी हैं.


सरकार ने इस बार किसानों के दिल्ली चलो मार्च से पहले ही बातचीत की प्रक्रिया शुरू कर दी है. किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच पहली बैठक 8 फरवरी को हुई. दूसरी बैठक 12 फरवरी को हुई. हालांकि यह बैठकें कामयाब नहीं हो पाईं.