Firaq Gorakhpuri Hindi Shayari: फिराक गोरखपुरी उर्दू के बड़े शायरों में शुमार होते हैं. उनका असल नाम रघुपति सहाय था. वो 1 अगस्त 1896 ई. में गोरखपुर में पैदा हुए. फिराक को शायरी विरासत में मिली. उनके पिता शायर थे. फिराक सियासत में भी दिलचस्पी रखते थे जिसकी वजह से उन्हें 18 माह जेल में रहना पड़ा. फिराक को साल 1961 में साहित्य अकादेमी अवार्ड, 1968 ई. में सोवियत लैंड नेहरू सम्मान, 1981 ई. में ग़ालिब अवार्ड, पद्म भूषण ख़िताब और 1970 में अदब के सबसे बड़े सम्मान ज्ञान पीठ अवार्ड से नवाज़ा गया.


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तेरे आने की क्या उमीद मगर 
कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं 


जो उन मासूम आँखों ने दिए थे 
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ 


ये माना ज़िंदगी है चार दिन की 
बहुत होते हैं यारो चार दिन भी 


मौत का भी इलाज हो शायद
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं


ज़िंदगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त 
सोच लें और उदास हो जाएँ 


कोई आया न आएगा लेकिन 
क्या करें गर न इंतिज़ार करें 


रोने को तो ज़िंदगी पड़ी है 
कुछ तेरे सितम पे मुस्कुरा लें 


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न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद 
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था 


तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो 
तुम को देखें कि तुम से बात करें 


हम से क्या हो सका मोहब्बत में 
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की 


एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें 
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं 


शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास 
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं 


बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम 
जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई 


कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं 
ज़िंदगी तू ने तो धोके पे दिया है धोका 


मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर 
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर 


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