Ramayan Story: मृत्यु से ठीक पहले मेघनाद-मंदोदरी के बीच अंतिम संवाद, पितृभक्ति का है उदाहरण
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Ramayan Story: मृत्यु से ठीक पहले मेघनाद-मंदोदरी के बीच अंतिम संवाद, पितृभक्ति का है उदाहरण

Ramayan Story: माता मंदोदरी की ओर से वचन सुनने के बाद मेघनाद ने जो कहा वो आज भी पितृभक्ति का अप्रीतम उदाहरण है. 

Ramayan Story: मृत्यु से ठीक पहले मेघनाद-मंदोदरी के बीच अंतिम संवाद, पितृभक्ति का है उदाहरण

Ramayan Story: रामायण काल में राम और रावण के बीच भीषण युद्ध हुआ था. इस युद्ध में एक-एक करके रावण के योद्धा और सैनिक मारे गए थे. शुरुआत में रावण अपने योद्धाओं के मरने पर तनिक भी विचलित नहीं होता था लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब रावण युद्ध के बीच में विचलित होने लगा. अपने बलशाली सेनापतियों की मृत्यु की खबर सुनकर ऊपर से तो रावण आत्मविश्वास से भरा दिखता था लेकिन अंदर ही अंदर वह भयाक्रांत रहता था.

कई बार विचलित हो चुका था रावण

कई ऐसे मौके आए जब रावण अपने नाना तुल्य राक्षस कुल के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति माल्यवान जी के समक्ष अपनी व्यथा सुनाई लेकिन जैसे ही वह सलाह देते रावण भड़क उठता था. ऐसा ही एक मौका आया जब रावण के बड़े बेटे मेघनाद ने अपने पिता से युद्ध की अंतिम अनुमति मांगी. पिता से आज्ञा लेने के बाद मेघनाद अपनी माता मंदोदरी से आज्ञा लेने पहुंचा.

मंदोदरी-मेघनाद संवाद

जिसके बाद मंदोदरी ने मेघनाद को प्रभु राम की शरण में जाने को कहा. मंदोदरी ने कहा कि जब तुम पहचान चुके हो को राम स्वंय भगवान हैं तो तुम उनके शरण में चले जाओ. माता मंदोदरी की ओर से वचन सुनने के बाद मेघनाद ने जो कहा वो आज भी पितृभक्ति का अप्रीतम उदाहरण है. 

मेघनाद ने रावण के सम्मान में ऐसा कहा

मेघनाद ने कहा कि यदि राम मुझे तीनों लोकों का राज्य भी प्रदान कर दें तो भी मैं युद्ध से भागे हुए कायर की संज्ञा लेकर जीवित रहना नहीं चाहता. क्योंकि, मेरी मेरी आत्मा ही मेरा सम्मान नहीं करेगी तो दूसरे क्या मेरा सम्मान करेंगे. इस दौरान मेघनाद की बातों को सुनकर रावण का कलेजा गर्व से भर गया.

राम से सीखें पिता का सम्मान करना

मेघनाद ने कहा कि तुम मुझे धर्म का मार्ग बता रही हो माता तो सुनों पुत्र के लिए केवल एक ही धर्म का मार्ग है अपने पिता के चरणों में सुख संपत्ति, वैभव यहां तक की अपनी मुक्ति का बलिदान दे देना. तभी उसने राम का उदाहरण देकर कहा कि माता तुम राम को देख लो उन्होंने क्या किया. अपने पिता की बात को मानते हुए सबककुछ छोड़ दिया. हमें स्वंय राम ने भी यही आदर्श सिखाया है. ये संवाद रामानंद कृत रामायण सीरियल से ली गई है.

 (Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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