नोएडाः देश की राजधानी दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के गौतम बौद्ध नगर जिला यानी नोएडा में आत्महत्या का ग्राफ खतरनाक स्तर से बढ़ रहा है. लोग मानसिक समस्याओं और अकेलेपन के कारण आत्महत्या जैसा गंभीर कदम उठाकर अपनी जिंदगी खत्म कर रहे हैं. मानसिक तनाव लोगों के जीवन पर भारी पड़ता जा रहा है. असफलता से घबराकर लोग उदासी के भंवर में फंसते जा रहे हैं. 


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नोएडा ने पिछले सप्ताह आत्महत्या के दस मामले दर्ज किए गए हैं. गोल्फ कोर्स मेट्रो स्टेशन पर 17 जनवरी को एक 16 वर्षीय युवक ने ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी. इटावा के रहने वाले किशोर अपने दोस्तों के साथ रहता था और मानसिक परेशानी से जूझ रहा था. वह अपने दोस्तों या परिवार को अपनी समस्या नहीं बता सका. 8 जनवरी को सेक्टर 62 में अपने परिवार के साथ रहने वाली 45 वर्षीय सबा सिद्दीकी ने पांचवीं मंजिल से कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. फोर्टिस अस्पताल में उनका डिप्रेशन का इलाज चल रहा था. 18 जनवरी को एक दुकानदार ने एक्सप्रेस-वे की सोसायटी में फांसी लगाकर जान दे दी. 19 जनवरी को पैरामाउंट सोसाइटी में रहने वाले एक इंजीनियर ने आत्महत्या कर ली. इस तरह किशोर, नौजवान, अधेड़, मर्द और औरत सभी आत्महत्या के शिकार बन रहे हैं. 

सब कुछ जल्दी पा लेने की चाह बन रही मौत का कारण 
आईएमए के पूर्व अध्यक्ष, डॉ. एन.के. शर्मा कहते हैं, “आजकल के बच्चे और युवा वक्त से पहले सब कुछ चाहते हैं ओर जब ये उन्हें मिलता है, तो वे अवसाद से ग्रस्त होते जा रहे हैं. अकेले रहने की वजह से वे अपनी पीड़ता और गम दूसरों को नहीं बता पाते हैं.“ वह घर से दूर रहते हैं. दोस्त उन्हें समझ नहीं पा रहे हैं. ऐसे में वह निराशा के भंवर में फंसकर अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं.’’
शर्मा ने कहा, “शिक्षा से लेकर सामाजिक जीवन में इतनी प्रतिस्पर्धा  बढ़ गई है कि दूसरों को पीछे छोड़ने के लिए वे प्रयास करते हैं, लेकिन जब वे सफल नहीं होते हैं, तो वे आत्महत्या का विकल्प चुन लेते हैं." 

तनाव की सबसे बड़ी वजह अकेलापन  
शर्मा ने कहा, “पहले, गांवों में संयुक्त परिवारों के समय में, युवाओं को हमेशा डर रहता था कि अगर वे कोई गलत काम करेंगे तो कोई उन्हें देख लेगा, उनके घर वालों की बदनामी होगी. हालांकि, अब ऐसा कोई डर नहीं है." डॉ. शर्मा के मुताबिक, “खुदकुशी के जो मामले सामने आ रहे हैं, उनमें सबसे बड़ा कारण अकेलापन है. आज अगर आप अपने चारों ओर देखें तो जो भी तनावग्रस्त और मानसिक रूप से परेशान हैं, उनके पास देखने वाला या बात करने वाला कोई नहीं है. बुरे वक्त में लोगों को किसी के सहारे की जरूरत होती है, लेकिन शहरों में ये सहारा नहीं मिल पा रहा है.’’ 


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