Gopi Chand Narang Died: उर्दू को अदब की भाषा और सांझी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानने वाले मशहूर साहित्यकार प्रोफेसर गोपीचंद नारंग नहीं रहे. जीवन भर भाषा के राजनीतिकरण के खिलाफ अपनी आवाज को मुखर करने वाले वाले, उर्दू साहित्य के प्रख्यात अधे्यता, आलोचक और विचारक प्रोफ़ेसर गोपीचंद नारंग ने 91 वर्ष की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना के चार्लोट में अंतिम सांस ली. वह समकालीन उर्दू के श्रेष्ठ लेखकों में एक थे, जो वैश्विक साहित्य जगत में धर्मनिरपेक्ष भारत के सांस्कृतिक राजदूत सरीखे थे. लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखने वाले प्रो नारंग अपनी प्रगतिशील और बहुलतावादी विचारों के हिमायती थे. वह सदैव संकीर्ण विचारधारा, सामाजिक अन्याय और असमानता के विरोधी थे.


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वह हिंदी-उर्दू को एक दूसरे की प्रतियोगी नहीं बल्कि पूरक भाषा मानते थे. वह उर्दू को कभी भी मुसलमानों की भाषा नहीं मानते थे, वह इसे सामाजिक सद्भाव और सौहार्द की भाषा मानते थे. वह रूढ़िवादिता और संप्रदायिकता को मानवीय उत्थान का सबसे बड़ा बाधक मानते थे. वह प्रेमचंद, रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी, राजिंदर सिंह बेदी और कृश्न चंदर की अंतिम कड़ी थे. वह एक विद्वान साहित्य अनुरागी थे, जिन्होंने उर्दू आलोचना के अलावा अंग्रेजी साहित्य में भी उल्लेखनीय कार्य किया हैं. बतौर आलोचक उन्होंने ग़ालिब, मीर, मंटो, इकबाल और प्रेमचंद के कार्य की गंभीर तीक्ष्णता से पुन: मूल्यांकन किया. उनकी इस साहित्य निष्ठा से उर्दू साहित्य को समृद्ध किया. वह अपने लेखन में अपने वैचारिक दर्शन के साथ-साथ भाषा के सौंदर्यशास्त्र और शिल्प को खोने नहीं देते थे. 


व्यक्तिगत जीवन


11 फरवरी 1931 को पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के दुक्की में जन्में प्रो गोपीचंद नारंग को साहित्य प्रथम की शिक्षा उनको अपने घर के साहित्यिक माहौल से मिली थी. उनके पिता धरमचंद नारंग फारसी और संस्कृत के विद्वान थे. इनके परिवार में पत्नी मनोरमा नारंग समेत उनके बेटे अरुण नारंग और तरुण नारंग हैं.


अकादमिक जीवन


उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से उर्दू में एमए कर, 1958 में शिक्षा मंत्रालय से मिलने वाली फेलोशिप द्वारा उर्दू साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज में उर्दू पढ़ाने लगे. इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में रीडर हो गए. 1963 से 1968 तक अमेरिका के विस्कान्सिन विश्वविद्यालय उसके बाद मिनेसोटा, मिनिएपोलिस और ओस्लो विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे. 1974 में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष के तौर पर जुड़े.


उपलब्धियां


देश के दो शीर्ष विश्वविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय द्वारा प्रोफेसर एमिरेट्स का दर्जा दिया गया था. वह एकमात्र उर्दू के साहित्यकार थे, जो भारत और पाकिस्तान दोनों देश के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित हुए थे. वह 1996-1999 से तक दिल्ली उर्दू अकादमी के उपाध्यक्ष भी रहे. वह मानव संसाधन मंत्रालय की महत्वकांक्षी परियोजना नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन आफ उर्दू लैंग्वेज से 1998-2004 तक संबद्ध रहे. 1998-2002 साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष और 2003-2007 साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भी रहे. इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स में वह 2002 से 2004 तक फेलो रहे.


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साहित्यिक जीवन और पुस्तकें


प्रोफेसर गोपीचंद नारंग की 57 से ज्यादा पुस्तके उर्दू अंग्रेजी और हिंदी में विविध विषयों पर प्रकाशित हो चुकी हैं- जैसे भाषा, साहित्य, कविता और आलोचना आदि पर. 
उनकी प्रमुख रचनाओं में उर्दू अफसाना रवायत और मसायल, इकबाल का फ़न, अमीर खुसरो का हिंदवी कलाम, जदीदियत के बाद आदि हैं. उर्दू गजल और हिंदुस्तानी जह़न ओ तहजीब को उर्दू गजल के उत्पत्ति के लिए याद किया जाता है. गोपीचंद नारंग ने हाल के वर्षों में मीर तकी मीर, गालिब और उर्दू गजल पर अपने प्रमुख कार्यों का अंग्रेजी अनुवाद किया.


विवाद


साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत उनकी कृति साखि्तयात पस-साखि्तयात और मशरिकी़ शेरियत पर साहित्यिक चोरी का आरोप लगा. बतौर साहित्य अकादमी के अध्यक्ष वर्ष 2003 से 2007 तक का उनका कार्यकाल भी काफी विवादों में रहा.


पुरस्कार और सम्मान 


उन्हें 1990 में पद्मश्री और 2004 में पदम भूषण से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा 1985 में ग़ालिब अवार्ड, वर्ष 1995 में साहित्य अकादमी अवार्ड, 2011 में इकबाल सम्मान, 2012 में इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. इसी वर्ष इन्हें पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा सितार-ए- इम्तियाज से सम्मानित किया गया. वर्ष  2021 में सर सैयद नेशनल एक्सीलेंस अवार्ड से 2021 में सम्मानित किया गया था. 1971 में इनको अल्लामा इकबाल पर किए गए उल्लेखनीय कार्य के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा स्वर्ण पदक मिला था. देश के प्रमुख तीन विश्वविद्यालय केंद्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद ने 2007 में, मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय ने 2008 में और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने 2009 में इन्हें डी.लिट की मानद उपाधि प्रदान की.


और अंत


प्रो नारंग उर्दू, अंग्रेजी एवं हिंदी  के अलावे बलूची, पश्तो, फारसी और संस्कृत की भी अच्छी जानकारी रखते थे. हिंदी के सुप्रसिद्ध लेखक कमलेश्वर ने प्रो नारंग के साहित्यिक अवदान पर चर्चा करते हुए कहा था कि- प्रत्येक भारतीय भाषा को एक गोपीचंद नारंग की जरूरत है.


ए निशांत
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.