नई दिल्लीः असम के 2020 के एक कानून की वैधता को बरकरार रखने वाले गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. 2020 के उस कानून के तहत असम में सरकार द्वारा वित्तपोषित सभी प्रांतीय मदरसों को सामान्य स्कूलों में परिवर्तित करने का प्रावधान है. गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने इस साल चार फरवरी को असम निरसन कानून, 2020 की वैधता को कायम रखा था.

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संविधान के अनुच्छेद 30 का उल्लंघन है कानून 
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका के निपटारे तक हाईकोर्ट के फैसले के कार्यान्वयन पर रोक लगाने का भी अनुरोध किया है. वर्ष 2020 के कानून से असम में मदरसा शिक्षा से जुड़े दो कानून निरस्त हो गए थे. असम के 13 लोगों द्वारा सर्वोच्च अदालत में दायर याचिका में दावा किया गया है कि 2020 का कानून मदरसा शिक्षा की वैधानिक मान्यता और संपत्ति “ले लेता है.“ इसमें यह दावा भी किया गया है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 30 का उल्लंघन है जो सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार देता है.

हाईकोर्ट के फैसले को दी गई है चुनौती 
अधिवक्ता अदील अहमद के जरिए दायर याचिका में इल्जाम लगाया गया है कि उच्च न्यायालय ने “गलती से“ फैसला दिया है कि असम मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) कानून, 1995 से मदरसा संस्थान सरकारी संस्थानों में बदल दिए गए और इस प्रकार यह नहीं कहा जा सकता है कि ऐसे मदरसे अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित या संचालित होते हैं. राज्य की विधानसभा ने 30 दिसंबर, 2020 को असम निरसन विधेयक पारित किया गया था. इस विधेयक में सभी प्रांतीय, सरकार द्वारा वित्त पोषित मदरसों को आम स्कूलों में बदलने का प्रावधान था.


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