नई दिल्लीः गुजरात के नरोदा गाम सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए 11 लोगों के आरोपियों को गुरुवार को एक विशेष अदालत ने बरी कर दिया था. इसमें भाजपा नेता और गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी सहित बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी समेत लगभग 67 आरोपी शामिल थे, जिनमें कई लोगों की केस के ट्रॉयल के दौरान ही मौत हो चुकी थी. कोर्ट के इस फैसले के बाद पीड़ितों ने प्रतिक्रिया देते हुए इसे न्यायपालिका की 'हत्या' बताया है और कहा है कि इससे भविषय में दंगाइयों का हौसला बढ़ेगा. पीड़ितों ने दावा किया है कि बरी किए लोगों में से कुछ ने उनकी आंखों के सामने उनके परिवार की जिंदगी छीन ली थी. 
27 फरवरी, 2002 को साबरमती ट्रेन नरसंहार के बाद भड़के राज्यव्यापी दंगों में नरोडा गाम हिंसा सबसे खराब नरसंहारों में से एक थी. इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल द्वारा की गई थी.

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इलाके में आज भी पसरा रहता है भुतहा सन्नाटा 
अहमदाबाद में नरोदा गाम के उस हिस्से में अब एक भयानक सन्नाटा पसरा हुआ है, जहाँ अल्पसंख्यक समुदाय के 11 सदस्य मारे गए थे. अधिकांश घरों को बंद कर दिया गया है. उनकी दीवारों को काले कपड़ों से ढक दिया गया है, जो उस विनाशकारी दिन की याद दिलाता है, जब उन घरों को के हवाले कर दिया गया था और उसके सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया गया था. 


न्यायपालिका राजनीतिक दबाव में है 
शरीफ मालेक, जो एक हिंसक भीड़ के हमले में घायल हो गए थे और जिनके घर को लूट लिया गया था, ने दावा किया है कि ये फैसला न्यायपालिका द्वारा दबाव में दिया हुआ फैसला लगता है. ऐसा फैसलों से सिर्फ दंगाइयों को प्रोत्साहन मिलेगा. मालेक ने कहा, “मैं अपने पड़ोस में एक घर में एक महिला और उसके दो बच्चों सहित परिवार के तीन सदस्यों को जिंदा जलाए जाने का गवाह था. दंगों से पहले वहां रहने वाले लगभग 110 परिवारों में से अब मुश्किल से 10-15 परिवार रह रहे हैं, जिनमें से अधिकांश घर बंद हैं.’’ मालेक ने कहा कि अगर ऐसा कोई दबाव नहीं होता और न्यायाधीश ने निष्पक्ष रूप से फैसला सुनाया होता तो कम से कम 25-30 अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा दी जाती. यह न्यायपालिका की हत्या है. अगर इस तरह का फैसला सुनाया जाता है तो इससे दंगाइयों को प्रोत्साहन मिलेगा. उन्हें अब कानून का भय नहीं रहेगा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि न्यायपालिका राजनीतिक दबाव में है. न्यायपालिका राजनीतिक नियंत्रण में है, खासकर गुजरात में.’’ 

शादीशुदा जोड़े और उनकी बेटी को जिंदा जला दिया गया था 
वहीं, इम्तियाज कुरैशी ने कहा कि उनके घर को लूट लिया गया और लोगों के एक समूह ने उनकी आंखों के सामने उनके परिवार के तीन लोगों की हत्या कर दी थी. उन्होंने दावा किया कि गुरुवार के फैसले से पता चलता है कि न्यायपालिका भारी दबाव में है". कुरैशी, ने कहा, "अब मुट्ठी भर लोग पड़ोस में रहते हैं, जबकि अधिकांश ने अपना इलाका छोड़ दिया है. मेरी आंखों के सामने एक शादीशुदा जोड़े और उनकी बेटी को जिंदा जला दिया गया. अपने परिवार के छह सदस्यों को जलाने वाली लुटेरों की भीड़ से बचने वाली एक महिला को भी मेरी आंखों के सामने चाकू मार दिया गया था." उन्होंने दावा किया कि इस मामले में सभी 67 अभियुक्तों के बरी होने का मतलब है कि "न्यायपालिका दबाव में है".

"अदालत ने सबूतों पर विचार नहीं किया" 
दंगों के दौरान अपने घर में लूट पाट देखने वाले अदीब पठान ने कहा, "अगर कानून की रक्षा करने वालों को कानून की हत्या करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह देश को विनाश की तरफ ले जाएगा. इस तरह लोग लोकतंत्र में विश्वास खो देंगे." पठान ने कहा कि उनके पास आरोपियों के खिलाफ सारे सबूत हैं." यहां तक कि एसआईटी के पास भी आरोपियों के खिलाफ सबूत थे, लेकिन अदालत ने उन पर विचार नहीं किया." पठान ने कहा, “गवाह के रूप में, मैंने अदालत के सामने 17 अभियुक्तों की पहचान की, और विशेष जांच दल (एसआईटी) ने अपनी रिपोर्ट में उसी निष्कर्ष पर आने से पहले महीनों तक मामले की जांच की थी. एसआईटी का गठन सुप्रीम कोर्ट ने किया था. तो इसका मतलब है कि कानून को कानून ने ही झुठलाया है."  

सभी 67 अभियुक्तों को बरी कर दिया
गौरतलब है कि 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद के नरोडा गाम क्षेत्र में दंगे भड़क उठे थे. इससे एक दिन पहले गोधरा ट्रेन में आग लगने के विरोध में बंद का ऐलान किया गया था. इस मामले में मुकदमा 2010 में शुरू हुआ, और छह अलग-अलग न्यायाधीशों ने तब से मामले की अध्यक्षता की, जिसकी शुरुआत जस्टिस एसएच वोरा से हुई, जिन्हें गुजरात हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया था. नरेंद्र मोदी सरकार में तत्कालीन मंत्री माया कोडनानी, बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी और विश्व हिंदू परिषद के नेता जयदीप पटेल मामले के मुख्य आरोपियों में शामिल थे. विशेष न्यायाधीश एसके बक्शी की अदालत ने गुरुवार को इस मामले में सभी 67 अभियुक्तों को बरी कर दिया, जो उन नौ में से एक थे जिनकी जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी ने की थी.


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