Haldwani Violence: 90 दिनों तक न चार्जशीट, औरतों पर UAPA; मदनी के UK पुलिस पर गंभीर आरोप
Jamiat Ulema E Hind on Haldwani Violence: मौलाना अरशद मदनी ने हलद्वानी दंगों में गिरफ्तार हुए 20 लोगों के खिलाफ उत्तराखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस मामले में मदनी ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं.
Jamiat Ulema E Hind: हल्द्वानी में हुए दंगे के मामले में उत्तराखंड हाई कोर्ट में बीती रोज सुनवाई हुई है. यह सुनवाई जमियत उलेमा-ए-हिंद की उस याचिका पर हुई है जिसमें पुलिस के जरिए 20 मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी को चुनौती दी गई थी. सीनियर वकील नित्या रामाकृष्णन ने कोर्ट से कहा कि आरोपियों के खिलाफ गिरफ्तारी के 28 दिनों के बाद यूएपीए लगाया गया थी, जिसकी वजह से उन्हें जमानत नहीं मिली है.
कोर्ट ने की जमानत याचिका खारिज
वकील ने आगे जानकारी दी कि सेशन कोर्ट ने आरोपियोंकी डिफॉल्ट जमानत याचिका को खारिज कर दिया था, क्योंकि लोकसभा चुनाव की वजह से उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल नहीं की दई थी. वकील ने आगे कि इससे आरोपियों के हितों पर असर पडा है और इसे कानूनी तौर पर असंवैधानिक माना गया है.
मौलाना अरशद मदनी ने क्या कहा?
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने बहस के दौरान कहा कि पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण व्यव्हार किया है. उन्होंने कहा कि आरोपियों के खिलाफ 90 दिन बीत जाने के बाद भी चार्जशीट न फाइल करना कानूनी तौर पर गलत है.
मौलाना अरशद मदनी ने किया ट्वीट
इसके साथ ही मौलाना अरशद मदनी ने इस मसले को लेकर ट्वीट भी किया. उन्होंने जानकारी दी कि जमीयत उलमा की गुजारिश पर सुप्रीम कोर्ट की सीनीयर ऐडवोकेट नित्या रामाकृष्णन ने नैनीताल जाकर बहस की. हल्द्वानी पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए जमीयत उलमा-ए-हिंद का अंत तक संघर्ष जारी रहेगा.
पुलिस पर लगाया गंभीर आरोप
उन्होंने अपने ट्वीट में कहा,"हल्द्वानी दंगा मामला में पुलिस और जांच संगठनों के पक्षपात का यह कोई पहला मामला नहीं है. मुस्लमानों से जुड़े अधिकतर मामलों में लगभग हर राज्य की पुलिस का व्यवहार समान होता है. कानून के मुताबिक 90 दिन के अंदर चार्जशीट दाखिल कर देनी चाहिए ताकि आरोपी बनाया गया व्यक्ति अपनी रिहाई के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू कर सके, लेकिन यह कितने दुख की बात है कि इस निर्देश को माना नहीं जाता."
महिलाओं पर भी यूएपीए
उन्होंने आगे कहा,"हल्द्वानी दंगा मामला में जांच एजेंसीयों और पुलिस का यह व्यवहार मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है, क्योंकि इस से न्याय मिलने में देरी हो जाती है. उन्होंने कहा कि इन गिरफ्तार किए गए लोगों में सात महिलाएं भी हैं और उन सब पर यू.ए.पी.ए. की धारा लगा दी गई है. ऐसे में एक बड़ा सवाल यह है कि अपने स्कूल और अपनी इबादतगाह को बचाने के लिए प्रदर्शन करने वाले क्या आतंकवादी हो सकते हैं? जबकि पुलिस की फायरिंग से जो सात निर्दोष मारे गए उनके बारे में पूरी तरह से खामोशी है, मानो पुलिस और सरकार की नज़र में इंसान की जिंदगी की कोई अहमियत नहीं है."