Poetry of the Day0: एहसान दानिश (Ehsan Danish) पाकिस्तान के उर्दू के मशहूर शायर, लेखक थे. एहसान साहब ने शायरी,  गद्य, भाषा विज्ञान, शब्दावली और छंद पर 100 से ज्यादा किताबें लिखीं. करियर की शुरुआत में उन्होंन बहुत रोमांटिक कविताएं लिखीं. लेकिन बाद में उन्होंने मजदूरों पर कविताएं लिखीं. एक वक्त ऐसा भी था जब उनके चाहने वाले उन्हें "शयर-ए मजदूर" (मजदूरों का शायर) कहने लगे. उनकी तुलना जोश मलिहाबादी से की गई है. एहसान ने कविता के जरिए आम लोगों की भावनाओं को प्रेरित किया. वह रोमांटिक और क्रांतिकारी, लेकिन कविता की सरल शैली के साथ सभी समय के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक हैं. ऐहसान की पैदाइश 2 फरवरी 1914 को उत्तर प्रदेश के जिला शामली में मौजूद कांडला में हुई. उन्होंने 22 मार्च 1982 को पाकिस्तान के लाहौर में आखिरी सांस ली.


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लोग यूँ देख के हँस देते हैं 
तू मुझे भूल गया हो जैसे 
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हाँ आप को देखा था मोहब्बत से हमीं ने 
जी सारे ज़माने के गुनहगार हमीं थे 
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किस किस की ज़बाँ रोकने जाऊँ तिरी ख़ातिर 
किस किस की तबाही में तिरा हाथ नहीं है 
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मैं हैराँ हूँ कि क्यूँ उस से हुई थी दोस्ती अपनी 
मुझे कैसे गवारा हो गई थी दुश्मनी अपनी 
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रहता नहीं इंसान तो मिट जाता है ग़म भी 
सो जाएंगे इक रोज़ ज़मीं ओढ़ के हम भी 
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आज उस ने हँस के यूँ पूछा मिज़ाज 
उम्र भर के रंज-ओ-ग़म याद आ गए 
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ये उड़ी उड़ी सी रंगत ये खुले खुले से गेसू 
तिरी सुब्ह कह रही है तिरी रात का फ़साना 
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और कुछ देर सितारो ठहरो 
उस का व'अदा है ज़रूर आएगा 
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'एहसान' अपना कोई बुरे वक़्त का नहीं 
अहबाब बेवफ़ा हैं ख़ुदा बे-नियाज़ है 
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न जाने मोहब्बत का अंजाम क्या है 
मैं अब हर तसल्ली से घबरा रहा हूँ 
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