नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नफरत भरे भाषणों को बहुत ही गंभीर मुद्दा बताते हुए दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकार को निर्देश दिया है कि वे ऐसे मामलों में शिकायत दर्ज होने का इंतजार किए बिना खुद संज्ञान लेकर दोषियों के खिलाफ आपराधिक मामले तुरंत दर्ज करें. सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है कि प्रशासन की तरफ से किसी भी तरह की देरी अदालत की अवमानना के दायरे में आएगी. न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की बेंच ने शाहीन अब्दुल्ला नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर दोनों राज्य सरकारों को नोटिस भी जारी किए हैं. बेंच ने कहा कि राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखने के लिए नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, भले ही वे किसी भी धर्म के हों.

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सांसद परवेश वर्मा के भाषण पर मांगा रिपोर्ट 
इसके साथ ही कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से 9 अक्टूबर को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बीजेपी सांसद परवेश वर्मा और बाकी के आपत्तिजनक बयानबाजी को लेकर कार्रवाई रिपोर्ट तलब की है. उल्लेखनीय है कि परवेश वर्मा ने विश्व हिंदू परिषद की दिल्ली में आयोजित एक सभा में मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार करने, यानी उससे कोई खरीद-खरोख्त न करने की सलाह दी थी. इसके साथ ही वर्मा ने कहा था कि मसलमानों मजदूरों से काम करवाने के बाद उन्हें मजदूरी न दें. उनकी इस अपील के बाद वहां मौजूद भीड़ ने वर्मा के समर्थन में नारे लगाए थे. इस मामले में पुलिस ने सभा का आयोजन करने वाले लोगों के खिलाफ हेट सपीच के बजाए बिना अनुमति के सभा करने का मामला दर्ज किया था. 

सांसद, विधायक, मंत्री और नेता सभी इसमें शामिल  
इसके पहले उत्तराखंड में भी एक धर्म संसद के दौरान मुसलमानों का बहिष्कार करने और पूरी कौम के खिलाफ नफरत भरे भाषण दिए गए थे. इस मामले में यति नरसिम्हानंद महाराज और मुसलमान से हिंदू बने जितेंद्र नारायण त्यागी सहित कई लोगों के खिलाफ हेट स्पीच का मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था. हालांकि बाद में सभी को जमानत पर रिहा कर दिया गया है. इसके अलावा भी देशभर से ऐसे मामले आते रहते हैं, जिसमें धार्मिक कट्टरता नफरत फैलाने के गर्ज से राजनीतिज्ञ, धार्मिक नेता और दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े लोग बयान देते रहते हैं. कई विधायक, सांसद और मंत्रियों ने भी ऐसे बयान दिए हैं.    


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