Hijab Controversy: आपको बता दें कि हिजाब पर बैन मामले की सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई पर मुस्लिम पक्ष ने अपने सुर बदले हैं. उन्होंने पहले कहा था कि हिजाब इस्लाम में ज़रूरी है लेकिन सोमवार को जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच से मुस्लिम पक्ष के सीनियर वकील यूसुफ एच मुछाला और सलमान खुर्शीद ने कहा कि कोर्ट अरबी भाषा में कुशल नहीं है, जिसके चलते वह कुरान की व्याख्या नहीं कर सकता. उन्होंने तर्क दिया कि अदालत की तरफ से हिजाब को महिला के निजता, सम्मान और पहचान सुरक्षित रखने के अधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए.


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वकील मुछाला का कहना है कि  'निजता मतबल शरीर और दिमाग पर खुद का अधिकार है. अंतरात्मा का अधिकार और धर्म का अधिकार कॉम्प्लिमेंट्री हैं. ऐसे में जब मुस्लिम महिला अगर हिजाब पहनना चाहती है, तो यह उसके सम्मान और निजता को सुरक्षित करने के साथ-साथ सशक्त महसूस कराने वाला पसंद का कपड़ा है.'


हिजाब पहनना अंतरात्मा की आवाज़ है


वहीं ने सलमान खुर्शीद ने कहा कि मुस्लिम महिला का हिजाब पहनना उसके धार्मिक विश्वास, अंतरात्मा की आवाज, संस्कृति के तौर पर जरूरी या पहचान, सम्मान और निजता बचाने रखने की निजी सोच हो सकती है. उन्होंने कहा, 'भारत जैसे सांस्कृतिक विविधता वाले देश में सांस्कृतिक प्रथाओं का सम्मान करने की जरूरत है. मुस्लिम महिलाएं यूनिफॉर्म पहनने के नियम से इनकार नहीं करना चाहती. वे अपनी सांस्कृतिक जरूरत और निजी पसंद के सम्मान में स्कार्फ के तौर पर एक अतिरिक्त कपड़ा पहनना चाहती हैं.'


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सुप्रीम कोर्ट ने इसपर क्या कहा?


सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को लेकर कहा कि, 'पहले आपने इस बात पर जोर दिया कि हिजाब धार्मिक अधिकार है. अब आप तर्क दे रहे हैं कि हिजाब धर्म के लिए जरूरी है या नहीं, इस बात का फैसला करने के लिए कोर्ट को कुरान की व्याख्या नहीं करनी चाहिए. आप तर्क दे रहे हैं कि मामले को 9 जजों की बेंच को यह पता करने के लिए भेजा जाना चाहिए कि यह काम जरूरी है या नहीं.' इसी के साथ कोर्ट ने वकील मुछाला से उनकी बातों को लेकर सफाई मांगी है.


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