आतंकवादियों के खिलाफ हिंदुओं ने उठाई बंदूक, J&K कश्मीर इंतेजामिया ने VDC को सराहा
Jammu and Kashmir News: जम्मू व कश्मीर के कई इलाकों में आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों को टार्गेट किलिंग के जरिए जान से मार दिया है. इसके बाद यहां आम लोगों ने बदूक उठा ली है.
Jammu and Kashmir News: जम्मू कश्मीर में पिछले दिनों कश्मीरी पंडितों की बड़े पैमाने पर टार्गेट किलिंग हुई. इस वजह से कई कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर छोड़ दिया. कुछ हिंदू लोगों ने अपनी नौकरी और अपनी जगह को छोड़ना मुनासिब नहीं समझा, बल्कि उन्होंने आतंवादियों के खिलाफ बंदूक उठाना बेहतर समझा. जम्मू व कश्मीर के राजौरी इलाके में कई लोगों ने बंदूक से खुद अपनी रक्षा करने के लिए कमर कस ली है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बंदूक उठाने वालों में डांगरी गांव के सरपंच धीरज, सरकारी ऑफिस प्यून सुभाष चंदर और BJP के बलॉक प्रेसिडें शामिल हैं.
आम लोगों ने उठाई बंदूक
डांगरी गांव में हाल ही में आतंकवादियों ने हमला किया और 7 लोगों को जान से मार दिया. इसके बाद यहां आम लोगों ने बंदूक उठाई है. यहां विलेज डिफेंस (VDC) कमेटी बनाई गई है. इसके तहत आम लोगों को बंदूक चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही है. रिपोर्ट के मुताबिक डांगरी गांव में VDC के तहत साल 1998 और 2001 में 71 बंदूकें दी गई थीं.
इंतेजामिया ने दिया साथ
VDC को मजबूत बनाने के लिए जम्मू व कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा और जम्मू व कश्मीर के DGP दिलबाग सिंह ने भी कही है. उन्होंने VDC में रिटायर सैनिकों को शामिल करने की बात भी कही है.
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क्या है VDC?
पिछले साल मार्च में जम्मू व कश्मीर सरकार ने विलेज डिफेंस कमेटी (VDC) का नाम बदलकर विलेज डिफेंस गार्ड्स (VDG) कर दिया है. इसके तहत हर मेंबर को एक रायफल और 100 गोलियां मिलती हैं. VDG के लीडर को 4500 रुपये और इसके सदस्यों क 4000 रुपये हर महीने मिलते हैं. VDG में कम से कम 15 मेंबर होते हैं. इसमें रिटायर्ड फौजी और पूर्व पुलिसकर्मी होते हैं. इसमें कुछ लोग अपनी मर्जी से शामिल हो सकते हैं. इन्हें .303 राइफल दी जाती है.
इसलिए बनाई गई VDC?
जम्मू कश्मीर में आतंकी घटनाएं बढ़ने के बाद यहां VDC बनाई गई. पहली बार VDC 1995 में बनी थी. इससे पहले यहां आतंकियों ने साल 1993 में 13 लोगों को जान से मार दिया था. रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल जम्मू में 9 जिलों में VDC है.
कम हुआ पलायन
बताया जाता है कि VDC बनने के बाद लोगों ने डर की वजह से अपने गांव और इलाके नहीं छोड़े हैं. कई बार लोगो ने आतंकियों से लड़ते हुए अपनी शहादत भी दी.
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