Mother's Day 2022: सफह-ए-हस्ती पर सबसे खूबसूरत लफ्ज़ मां है और दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता मां का रिश्ता है. मां क़ुदरत का वो अनमोल तोहफा है जिसका कोई मुतबादिल नहीं. मां खूबसूरत एहसास, दिलनशीं जज़्बात, और प्यार मोहब्बत और हमदर्दी सरचश्मा है. मां और बच्चे का रिश्ता दुनिया में सबसे अहम और अनमोल होता है. एक बच्चे के रिश्ते की शुरुआत दुनिया में मां से ही होती है फिर उसके बाद बच्चा बड़ा होकर अपनी ज़िंदगी में कई और रिश्तों को अपनाता है. मां की ममता और प्यार हर इंसान के लिए बहुत जरूरी होता है. मां बच्चे की इस जरूरत को बिना किसी गर्ज के पूरा करती है. मां खुलूस व वफा का वो पैकरे मुजस्सम है जो अपने बच्चों की कोताहियों और खताओं को माफ कर देती है, हज़ारों तकलीफ व सितम सहकर भी बच्चों के लिए दुआएं देती है.


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लबों पर उसके कभी बद दुआ नहीं होती
बस एक मां है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती


मदर्स डे क्यों मनाते हैं?


वैसे तो मां अपने बच्चे पर अपनी सारी ज़ंदगी न्यौछावर कर देती है. बच्चे की खुशी में खुश और तकलीफों में दर्द बांटती हैं. ऐसे में बच्चे अपनी मां के लिए कुछ खास करना चाहते हैं और मां को खिराजे अक़ीदत पेश करना चाहते हैं. यूं तो हर दिन मां की इज्ज़त व एहतराम का होता है. लेकिन उसकी ममता और प्यार के इज़हार के लिए एक खास दिन भी लोग मनाते हैं. इस दिन को मदर्स डे कहते हैं. हर साल मई के दूसरे इतवार को यौमे मादर यानी मदर्स डे मनाया जाता है. लोग इस दिन अपनी मां को खास महसूस कराकर उसे ये बताने की कोशिश करते हैं कि उसकी ज़ंदगी में मां का क्या रोल है और वो भी मां से कितना प्यार करते हैं.


मदर्स डे सिर्फ़ हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि कई दीगर मुल्कों में भी धूमधाम से मनाया जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि मदर्स डे मई माह के दूसरे इतवार को ही क्यों मनाया जाता है?


कैसे हुई मदर्स डे की शुरुआत?


इस दिन को मनाने की शुरुआत बाज़ाब्ता तौर पर 1914 में हुई थी. दरअसल मदर्स डे मनाने की शुरुआत एना जार्विस नाम की एक अमेरिकी ख़ातून ने की थी. एना अपनी मां को अपने लिए आइडियल मानती थीं और उनसे बहुत प्यार करती थीं. जब एना की वालिदा का इंतेक़ाल हुआ तो उन्होंने कभी शादी न करने का फैसला करते हुए अपनी मां के नाम ज़िंदगी वक़्फ़ कर दी. अपनी वालिदा को ख़िराजे अक़ीदत पेश करने के लिए उन्होंने मदर्स डे मनाने की शुरुआत की जो आज भी जारी है.


हर साल मई में इतवार को ही क्यों मनाते हैं मदर्स डे


अमेरिका के आंजहांनी सद्र वुड्रो विल्सन ने बाज़ाब्ता तौर पर 9 मई 1914 में मदर्स डे मनाने की शुरुआत की. इस खास दिन के लिए अमेरिकी पार्लियामेंट में कानून पास किया गया. जिसके बाद मई महीने के दूसरे इतवार को मदर्स डे मनाने का फैसला लिया गया. बाद में मदर्स डे को मई के दूसरे इतवार के दिन मनाने की तजवीज़ पेश की गई जिसे अमेरिका समेत यूरोप, हिंदुस्तान और कई दीगर मुल्कों ने भी मंज़ूरी दी.


इस्लाम में मां का मर्तबा बहुत बुलंद है


मां का मर्तबा हर मज़हब में इज़्ज़त व एहतेराम का महवर है. इस्लाम में मां का मर्तबा अज़ीमतर है. मां खुदा की तरफ़ से वो खूबसूरत तोहफा है जिसमें अल्लाह ने अपनी बरकत राहत फज़लोकरम और अज़मत की आमेज़िश शामिल फरमाकर अर्श से फर्श पर उतारा और मां के क़दमों तले जन्नत देकर मां को आला तरीन मर्तबे पर फायज़ कर दिया. हदीस में है एक सहाबी ने पैगमबर मोहम्मद से तीन दफा दरयाफ्त किया मुझ पर सबसे ज़्यादा हक़ किसका है तो रसूल ने तीनों मर्तबा कहा तुम्हारी मां का चौथी मर्तबा हज़रत मोहम्मद ने कहा तुम्हारे वालिद का है. इस से पता चलता है कि मां का मर्तबा कितना बुलंद और अज़ीमतर है.


ममता को तोलने का तराज़ू नहीं बना
हरगिज़ न मां का प्यार मिलेगा दुकान पर


नामवर शायरों ने माँ के प्यार, उसकी मोहब्बत और शफ़क़त को और अपने बच्चों के लिए उस की जानसारी को वाज़ेह करते हुए अपनी शायरी में ख़ास जगह दी है. कुछ अशआर.


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चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है
-मुनव्वर राना


मुझे मालूम है मां की दुआएं साथ चलती हैं,
सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते मैंने देखा है
-आलोक श्रीवास्तव


एक मुद्दत से मेरी माँ नहीं सोई 'ताबिश'
मैंने इक बार कहा था मुझे डर लगता है
-अब्बास ताबिश


ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले
दिन भर की मशक़्क़त से बदन टूट रहा है
- तनवीर सिप्रा


इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
मेरी शह-रग पे मेरी मां की दुआ रखी थी
- नज़ीर बाक़री


इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
मुनव्वर राना


आज दुनिया भर में लोग मदर्स डे मना रहे हैं अपनी-अपनी वालिदा को याद कर रहे हैं उनसे मोहब्बत और प्यार का इज़हार कर रहे हैं. मां जैसी अज़ीम हस्ती को खिराजे अक़ीदत पेश कर रहे हैं. आज बच्चे, जवान और बूढ़े सब इस खास दिन को बहुत खास तरीके मां को मुबारकबाद देते हुए उनके तईं अपने प्यार और लगाव का इज़हार कर रहे हैं.
-मोहम्मद रिज़ाउल्लाह शाइक़