बदल रहा है भारत का मुसलमान; तीसरी बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश में इस मामले में आई गिरावट
India birth control measures resonate among Muslims community: पिछले दस सालों में भारत में मुसलमानों के यहां जन्म दर में लगभग 50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है और इसमें सबसे ज्यादा भूमिका मस्जिद के इमाम और उलेमा ने निभाई है. उन्होंने आबादी नियंत्रण को लेकर उनके बीच फैली गलत अवधारणाओं को दूर करने का काम किया है.
नई दिल्लीः भारत के मुसलमानों पर अक्सर आबादी बढ़ाने और जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को न अपनाने के इल्जाम लगते रहे हैं, लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. मुस्लिम परिवारों में कम हो रही बच्चों की संख्या इस समुदाय में जनसांख्यिकीय स्थिरता के संकेत दे रेह हैं. ये रिपोर्ट ऐसे वक्त में आई है जब भारत इस महीने आबादी के मामले में चीन से आगे निकलकर दुनिया का सबसे बड़ी आबादी वाला देश बनने के लिए तैयार है.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की आबादी 1.2 बिलियन थी. संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि इस महीने भारत की आबादी 1.42 अरब तक पहुंच जाएगी. मुस्लिम समुदाय भारत का दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक समूह है. 2011 के जनगणना के मुताबिक, वह भारत की कुल आबादी यानी 1.2 बिलियन का 14.2 फीसदी हिस्सा है, जबकि बहुमत हिंदुओं की इसमें हिस्सेदारी 79.8 फीसदी थी. भारत में रहने वाली मुस्लिम आबादी इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी है.
1992-93 के मुकाबले में आधा हो गया है बच्चों का औसत
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक, छोटे मुस्लिम परिवारों की प्रवृत्ति में पिछले 15 वर्षों में काफी इजाफा देखा गया है. मुस्लिम परिवारों में 2019-21 में बच्चों का औसत 2.4 था, जबकि 2015-16 में 2.6 और 2005-06 में 3.4 था. हालांकि 2.4 अभी भी दूसरे समुदायों की तुलना में ज्यादा है, लेकिन इसके बावजूद गिरावट की दर भी सबसे तेज है. 1992-93 में 4.4 के मुकाबले में यह आधा रह गया है. एक रूढ़ीवादी समाज में इस तरह का बदलाव आना सकारात्मक परिर्वतन माना जा रहा है. विशेषज्ञों ने इस बदलाव का स्वागत किया है. ऐसा माना जा रहा है कि मुस्लिम इमामों ने इस तरह का परिवर्तन लाने में बड़ी भूमिका निभाई है.
गलतफहमियों को दूर करना मुस्लिम समाज का काम
उत्तर प्रदेश में लखनऊ ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद कहते हैं, "मुसलमानों में यह गलत धारणा फैली है कि इस्लाम जन्म नियंत्रण के उपायों के इस्तेमाल की इजाजत नहीं देता है." उन्होंने इस्लाम के कुरान और कानूनों का जिक्र करते हुए कहा, “शरीयत परिवार नियोजन की बात करता है. इन गलतफहमियों को दूर करना मुस्लिम समाज और उलेमा की जिम्मेदारी है. हमने इस तरह के मुद्दों के बारे में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं, अवाम से अपील की है. शरीयत के सही संदेश को उनतक पहुंचाया है." वहीं, पूर्वी राज्य बिहार के कुछ हिस्सों में स्वास्थ्य कर्मियों ने कहा, "वे नियमित रूप से स्थानीय मस्जिदों के इमामों से मिलते हैं, और उनसे शुक्रवार की नमाज के बाद पुरुषों को जन्म नियंत्रण का सुझाव देने की अपील करते हैं. हालांकि इसके परिणाम उत्साहजनक नहीं रहे हैं."
बदल रही है मुसलमानों की सोच
बिहार के किशनगंज में अल अजार मस्जिद के इमाम अहमद कहते हैं, "हम सात भाई और चार बहनें हैं. हम में से प्रत्येक के चार या पांच बच्चे हैं. "उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद शहर में हस्तशिल्प निर्यातक और अपेक्षाकृत थोड़े समृद्ध मुस्लिम 65 वर्षीय शाहिद परवेज कहते हैं, "मैं छह भाई-बहनों में से एक था. मैंने यह सुनिश्चित किया कि मेरा छोटा परिवार हो. मेरे दो बेटे और एक बेटी हैं. सभी विश्वविद्यालय में पढ़े हैं.’’ उनकी बेटी मुनीज़ा शाहिद दिल्ली में शिक्षक हैं.
नई दिल्ली से सटे साइबर सिटी नोएडा में रहने वाले 42 वर्षीय सैयद मोहम्मद तल्हा कहते हैं, "सिर्फ एक बच्चा होने से हमें उस पर ध्यान केंद्रित करने, उसे अच्छी शिक्षा देने के कई फायदे हैं. हमें इस बात का फख्र है कि हमारी सात वर्षीय बेटी एक प्रतिष्ठित मॉन्टेसरी स्कूल में पढ़ती है. हम उसका सालाना 2.55 लाख फीस अदा करते हैं."
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