नई दिल्लीः पिछले 3 जुलाई को हैदराबाद में भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पार्टी नेताओं और कार्यकताओं से इस बात की अपील करना कि पार्टी के लोग पसमांदा मुसलमानों तक अपनी पहुंच बनाएं और बढ़ाए, अब आकार लेने लगी है. पिछले दिनों देश के कई हिस्सों में भाजपा नेताओं और मुस्लिम पसमांदा नेताओं के बीच बैठक हो चुकी है. इस मामले में भाजपा से दो कदम आगे बढ़ते हुए पसमांदा मुस्लिम समाज खुद भाजपा को गले लगाने के तैयार दिख रहा है. हालांकि, भाजपा के लिए इसे इतना जल्दी साध लेना भी आसान नहीं होगा. पसमांदा मुस्लिम समाज भी पार्टी से बार्गेनिंग करने के मूड में दिख रहा है. 19 जुलाई को लखनउ में पसमांदा मुस्लिम समाज की सम्पन्न हुई बैठक में पारित एक प्रस्ताव प्रधानमंत्री से विभिन्न मुद्दों पर हस्तक्षेप और कार्रवाई की मांग की गई है. 

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

’कांग्रेस ने पसमांदा मुसलमानों के साथ किया बड़ा धोखा’ 
पसमांदा मुस्लिम समाज के नेता अनीस मंसूरी, जो उत्तर प्रदेश की पूर्व सपा सरकार में राज्यमंत्री रह चुके हैं, कहते हैं, इस वक्त देश में मुसलमानों की कुल आबादी का 85ः फीसदी पसमांदा तबका है. उन्हें आज़ादी के बाद भी सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलता था जिसे तत्कालीन काँग्रेस सरकार ने 10 अगस्त 1950 के प्रेसिडेंशियल ऑर्डर के ज़रिए खत्म कर दिया था. ये आज़ाद भारत की एक बड़ी घटना थी और पसमांदा मुसलमानों के साथ कांग्रेस का एक धोखा था. इस कानून को खत्म करने से पसमांदा मुसलमानों की एक बड़ी आबादी पिछड़ा व आदिवासी घोषित होने से वंचित रह गई. इसमें सावंत, भाँट, (रहमानी) गौरिया, नालबंद, गधेडी, आतिशबाज़ और जागा जैसे बिरादरियां शामिल हैं.’’  

सेक्यूलर पार्टियों ने सिर्फ अशराफ मुसलमानों का तुष्टिकरण किया 
अनीस मंसूरी, कहते हैं, ’’केंद्र और राज्य सरकारों की उपेक्षा की वजह से पसमांदा मुसलमानों की कुल 82 मुस्लिम पिछड़ी जातियाँ, जिसे मंडल कमीशन ने ओबीसी में शामिल किया हैं’ के पुश्तैनी कारोबार खत्म हो गए हैं. इस वजह से उनके सामने रोज़ी - रोटी का संकट पैदा हो गया है. हमारे बच्चों की तालीम संभव नहीं हो पा रही है. रोज़गार खत्म हो गये हैं.’’ अनीस ने कहा कि पसमांदा मुसलमानों की बदहाली की कड़वी सच्चाई का ज़िक्र माननीय. राजेंद्र सच्चर आयोग और माननीय रंगनाथ मिश्रा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में की है. उन्होंने कहा कि भारत की आज़ादी का इतिहास हमारे लोगों के ख़ून से लिखा गया है, फिर हमारे हालात ऐसे क्यों है. इसकी जवाबदेही भी तय होनी चाहिए. तमाम सेक्यूलर मानी जानी वाली राजनैतिक पार्टियों ने अब तक सिर्फ अशराफ मुसलमानों का ही तुष्टिकरण किया है. पसमांदा मुसलमान बदहाल है. उनकी बेहतरी के लिए आज तक किसी दल ने कुछ भी नहीं किया. हम प्रधानमंत्री से मांग करते हैं कि वह हमारी मांगों पर ध्यान देकर इस दिशा में नीतियों का निर्माण करें, पसमांदा मुसलमान भाजपा का समर्थन करेगा. 


प्रधानमंत्री से पसमांदा मुस्लिम समाज की मांग 


उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पूरे मुल्क में कर्पूरी ठाकुर फार्मूला के मुताबिक, अन्य पिछड़े वर्ग कोटा में अतिपिछड़ा वर्ग के लिए अलग से रिजर्वेशन की व्यवस्था लागू की जाए और पसमांदा (पिछडे़) अधिसूचित मुस्लिम जातियों को प्राथमिकता बुनियाद पर सबसे ऊपर रखा जाए. खाली जगहों में बैकलॉग के द्वारा भर्ती की जाए. 

औद्योगिकीकरण की वजह से पसमांदा मुस्लिम समाज जिसके तहत दस्तकार/कारीगर/मज़दूर तबके के लोग आते हैं, इनकी बेरोजगारी में इजाफा हुआ है. यह समाज भुखमरी की कगार पर पहुँच गया है. नव उदारवादी और अँधाधुंध मशीनीकरण की नीतियों की वजह से इन तबकों में बेरोज़गारी बढ़ी है. इसलिए लघु उद्योग का विकास ग्रामीण/कस्बा /नगर/ महानगर स्तर पर विकसित किया जाए ताकि दस्तकारों को रोज़गार मिल सके.

दलित मुसलमानों/ ईसाइयों को संविधान की धारा- 341 के 1950 के राष्ट्रपति महोदय के आदेश के पैरा-3 को रद्द करके एस0सी0/एस0टी0 की तरह सभी स्तर पर आरक्षण सुनिश्चित किया जाए. माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने अपने एक फैसले में कहा है कि जो जातियाँ रिजर्वेशन के द्वारा नौकरियों में अपना 50 फीसदी हासिल कर चुकी हैं, उन्हें ओबीसी रिजर्वेशन से बाहर किया जाना चाहिए. सरकार को इस पर ईमानदारी से काम करना होगा.

अल्पसंख्यकों के विकास के लिए आवंटित बजट का 80 फीसदी हिस्सा पसमांदा मुसलमानों के शैक्षिक सामाजिक और आर्थिक विकास पर खर्च किया जाना तय किया जाए.

पसमांदा मुसलमानों के संरक्षण के लिए एस0सी0, एस0टी0 कानून की तरह क़ानून बनाना जरूरी हो गया है. सरकार इस बिंदु पर तत्काल विचार करे.

पसमांदा मुसलमानों के कारोबार पर उचित नीतियां बनाई जानी चाहिए. इनके उत्पाद ब्रांडेड नहीं होने की वजह से बाज़ारीकरण की दौड़ में पिछड़ गए हैं. सरकार को विशेष व्यवसायिक, तकनीकी और औद्योगिक प्रशिक्षण देकर इन कामगार तबके को स्किल्ड वर्क फोर्स में बदला चाहिए. सरकारी उपेक्षा की वजह से मुस्लिम वक्फ सम्पत्तियों पर माफियाओं का क़ब्ज़ा होता जा रहा है. खरबों की वक्फ सम्पत्तियाँ बेकार पड़ी हैं. मुसलमानों को वक्फ सम्पत्तियों को पसमांदा मुसलमानों की बेहतरी के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए. सरकार इस दिशा में नीतियां बनाए. 

संसाधन सीमित हैं इसलिए पसमांदा मुसलमानों को कारोबार करने के लिए बैंकों से आसानी से ऋण उपलब्ध कराया जाए. पसमांदा मुस्लिम समाज आज भी मुफ्त राशन, अवास, और शौचालय बिना भेदभाव के मिलने के कारण बड़ी तादाद में भाजपा को मतदान करता है, इसलिए उनके उत्थान के लिए विशेष कार्य योजना बना कर उन्हें समाज और विकास की मुख्यधारा से जोड़ा जाए. 


ऐसी ही मुस्लिम हितों से जुड़ी ख़बरों के लिए विजिट करें zeesalaam.in